हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में मंगलवार सुबह बादल फटने से भारी नुकसान हुआ। चुराह के पंगोला नाला में बादल फटने से गडफरी और थली पंचायतों का संपर्क टूट गया है। सड़कों और खेतों को भारी क्षति पहुंची है। पंगोला नाले में अचानक सैलाब आने से मार्ग क्षतिग्रस्त हो गया है जिससे यातायात बाधित है। हिमाचल प्रदेश में बरसाती आफत थमने का नाम नहीं ले रही है। जिला मंडी में भारी तबाही के बाद चंबा में भी मंगलवार सुबह बादल फटा। बादल फटने के बाद आए सैलाब में सड़कों और खेतों को नुकसान पहुंचा है। चुराह के पंगोला नाला में बादल फटा है। इस कारण दो पंचायतों गडफरी और थली का पूरी तरह से संपर्क कट गया है। सुबह करीब छह बजे भारी वर्षा हुई और अचानक पंगोला नाले में सैलाब आ गया। इस कारण क्षेत्र का मार्ग पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया है। बादल फटने से नाले में बाढ़ में गडफरी व थल्ली पंचायतों को जोड़ने वाला संपर्क मार्ग बह गया है। ऐसे में उक्त पंचायतों का आपस का संपर्क पूरी तरह से कट गया है। गनीमत यह रही कि जिस समय बादल फटा, उस वक्त मार्ग से कोई भी वाहन नहीं गुजर रहा था।
चंबा के पंगोला नाले में बादल फटने के बाद मार्ग क्षतिग्रस्त हो गया है। इस कारण क्षेत्र में जाने वाली एचआरटीसी व निजी बसें फंस गई हैं। अन्य छोटे वाहन भी आवाजाही नहीं कर पा रहे हैं। इस घटना से क्षेत्र के लोग बुरी तरह से सहम गए हैं। हाल ही में चुराह की ग्राम पंचायत बघेईगढ़ व टिकरीगढ़ में भी बादल फटने की एक ही दिन में दो घटनाएं भी सामने आई थीं। इससे नकरोड़-चांजू मार्ग पर बना पुल बह गया था, जिससे पूरा दिनभर मार्ग पर वाहनों की आवाजाही बाधित रही थी। हालांकि, देर शाम तक लोक निर्माण विभाग की ओर से वैकल्पिक मार्ग की व्यवस्था कर दी गई थी। वहीं, टिकरीगढ़ के बंधा नाला में भी बादल फटा था, जिस कारण लोगों की जमीन को भारी नुकसान हुआ था।
नाले में बादल फटने के बाद आवाजाही बंद होने के कारण लोगों को मलबे के ऊपर से पैदल गुजरना पड़ा। तहसीलदार तीसा आशीष ने बताया कि मंगलवार सुबह के समय पंगोला नाला में बादल फटने की सूचना मिली है। इससे मार्ग बह गया है। हालांकि, अन्य प्रकार का नुकसान होने की कोई सूचना नहीं है। बादल फटने से होने वाले नुकसान की जानकारी जुटाई जा रही है। हिमाचल प्रदेश का यह मानसून फिर एक बार कहानी नहीं, खतरे की घंटी साबित हो रहा है। चंबा के चुराह क्षेत्र में लगातार बादल फटने की घटनाएं न केवल प्राकृतिक असंतुलन को दर्शाती हैं, बल्कि यह भी सवाल उठाती हैं कि आपदा प्रबंधन और बचाव व्यवस्था को और मजबूत कैसे किया जाए।