दुबई, एक ऐसा शहर जो अपने चमचमाते स्काईस्क्रेपर्स, आधुनिक जीवनशैली, और कारोबारी अवसरों के लिए जाना जाता है, अब भारतीय मध्यम वर्ग का नया ठिकाना बन रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण है दुबई का गोल्डन वीजा, जो 10 साल की रेजिडेंसी और बिना कर की जिंदगी का वादा करता है। लेकिन यह प्रवृत्ति केवल चमक-दमक की बात नहीं है; इसके पीछे भारत की कुछ गहरी चुनौतियाँ और दुबई के अनूठे अवसर हैं।
भारत में मध्यम और उच्च-मध्यम वर्ग को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। यहाँ की कर व्यवस्था जटिल है, जिसमें उच्च आय वालों पर 42% तक आयकर लगता है। हाल ही में विरासत कर की चर्चाएँ भी इस वर्ग पर वित्तीय दबाव बढ़ा रही हैं। इसके अलावा, नौकरशाही बाधाएँ, कर अधिकारियों की सख्त जाँच, और वैश्विक निवेश जुटाने वालों के लिए अनिश्चित नियम-कानून पेशेवरों को विदेश की ओर धकेल रहे हैं।
शहरों में बढ़ती भीड़, प्रदूषण, और असंगत बुनियादी ढांचा भी मध्यम वर्ग को निराश कर रहा है। मिसाल के तौर पर, दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में प्रदूषण और ट्रैफिक की समस्याएँ परिवारों के लिए बेहतर जीवन की तलाश को और मजबूत कर रही हैं।
अब बात करते हैं दुबई के गोल्डन वीजा की। 2025 में UAE ने नामांकन-आधारित गोल्डन वीजा शुरू किया, जिसने मध्यम वर्ग के लिए इसकी राह आसान कर दी। पहले जहाँ 4.5 करोड़ रुपये की संपत्ति में निवेश करना पड़ता था, अब केवल 23 लाख रुपये की एकमुश्त फीस में 10 साल का रेजिडेंसी वीजा मिल सकता है। यह शिक्षकों, नर्सों, तकनीकी विशेषज्ञों, और डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स जैसे मध्यम वर्ग के पेशेवरों के लिए भी सुलभ है।
दुबई का सबसे बड़ा आकर्षण है इसकी कर-मुक्त अर्थव्यवस्था। यहाँ न आयकर है, न पूंजीगत लाभ कर। यानी, जो कमाई आप भारत में करते हैं, उसका बड़ा हिस्सा कर में चला जाता है, लेकिन दुबई में वह पूरी तरह आपकी जेब में रहता है। इससे मध्यम वर्ग अपनी बचत और निवेश को तेजी से बढ़ा सकता है।
दुबई की विश्व-स्तरीय सुविधाएँ भी परिवारों को लुभा रही हैं। उन्नत स्वास्थ्य सेवाएँ, अंतरराष्ट्रीय स्तर की स्कूलिंग, और डिजिटल बुनियादी ढांचा मध्यम वर्ग के लिए एक सपने जैसा है। UAE में 38% आबादी भारतीय है, जो सांस्कृतिक एकीकरण को आसान बनाता है। चाहे वह भारतीय रेस्तरां हों, दीवाली और होली जैसे त्योहार हों, या सामुदायिक आयोजन, दुबई में भारतीयों को घर जैसा माहौल मिलता है।
कारोबारी दृष्टिकोण से भी दुबई एक मज़बूत केंद्र है। यहाँ 100% विदेशी स्वामित्व और स्टार्टअप्स के लिए प्रोत्साहन ने भारतीय उद्यमियों को आकर्षित किया है। आपको जानकर हैरानी होगी कि दुबई के 30% स्टार्टअप्स भारतीयों के नेतृत्व में हैं। गोल्डन वीजा धारकों को बिना किसी स्थानीय स्पॉन्सर के काम करने की आज़ादी है, और वे अपने परिवार और घरेलू कर्मचारियों को भी स्पॉन्सर कर सकते हैं।
भारत से केवल तीन घंटे की उड़ान दुबई को और खास बनाती है। यह नज़दीकी उन लोगों के लिए मानसिक सुकून देती है जो अपने परिवार और जड़ों से जुड़े रहना चाहते हैं। चाहे त्योहारों के लिए भारत आना हो या रिश्तेदारों से मिलना, दुबई की भौगोलिक स्थिति इसे आदर्श बनाती है।
लेकिन यहाँ कुछ सीमाएँ भी हैं। गोल्डन वीजा नागरिकता या स्थायी रेजिडेंसी नहीं देता, जो कुछ लोगों के लिए कमी हो सकती है। नामांकन-आधारित वीजा के लिए सख्त पृष्ठभूमि जाँच होती है, जिसमें मनी लॉन्ड्रिंग और सोशल मीडिया की स्क्रीनिंग शामिल है। कुछ क्षेत्रों में भाषा की बाधाएँ या उच्च शिक्षा के सीमित विकल्प भी परिवारों के लिए चुनौती बन सकते हैं। फिर भी, यह प्रवृत्ति बड़े पैमाने पर पलायन नहीं है, बल्कि एक सोचा-समझा कदम है, जो भारत की चुनौतियों और दुबई के अवसरों के बीच संतुलन को दर्शाता है।
दुबई का गोल्डन वीजा भारतीय मध्यम वर्ग के लिए एक नया द्वार खोल रहा है। यह न केवल आर्थिक स्वतंत्रता और बेहतर जीवनशैली का अवसर देता है, बल्कि वैश्विक मंच पर भारतीय प्रतिभा को चमकने का मौका भी प्रदान करता है। जैसे-जैसे अधिक भारतीय पेशेवर और उद्यमी इस दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं, यह सवाल उठता है कि क्या भारत को अपने प्रतिभाशाली मध्यम वर्ग को बनाए रखने के लिए और कदम उठाने चाहिए?