बीमा पॉलिसी लेते समय अगर आप सच्चाई से मुंह मोड़ते हैं, तो यह गलती न सिर्फ भविष्य में आपका भरोसा तोड़ सकती है बल्कि आपके परिवार को मुश्किलों के दलदल में भी धकेल सकती है। हरियाणा से सामने आया एक मामला इसी की मिसाल है, जहां बीमाधारक की मौत के बाद उसकी पत्नी को बीमा का लाभ नहीं मिल पाया क्योंकि आवेदन करते समय उसने खुद की शराब की लत को छिपाया था। मामला उपभोक्ता अदालत से होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक गया, लेकिन अंत में न्यायालय ने बीमा कंपनी के पक्ष में फैसला सुनाया।
क्या था पूरा मामला?
हरियाणा के झज्जर निवासी महिपाल सिंह ने मार्च 2013 में LIC की एक हेल्थ पॉलिसी ली थी। आवेदन करते समय उन्होंने खुद को पूरी तरह नशामुक्त बताया था — यानी न शराब, न तंबाकू, न धूम्रपान। लेकिन अगले साल जून 2014 में अचानक उनकी तबीयत बिगड़ी और अस्पताल में भर्ती होने के बाद उनकी मौत हो गई। मेडिकल रिपोर्ट्स से पता चला कि वे लंबे समय से अत्यधिक शराब का सेवन कर रहे थे, जिससे उनके अंगों को नुकसान हुआ और यही उनकी मृत्यु का कारण बना।
क्लेम रिजेक्ट, कोर्ट की शरण
पत्नी सुनीता सिंह ने बीमा क्लेम दायर किया, लेकिन LIC ने यह कहकर खारिज कर दिया कि बीमाधारक ने शराब की लत को छुपाया था। निचली अदालत ने पीड़िता के पक्ष में फैसला देते हुए क्लेम राशि, ब्याज और मानसिक क्षति के लिए मुआवजा देने का आदेश दिया। लेकिन मामला राज्य और राष्ट्रीय आयोग होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
मार्च 2025 में सुनाए फैसले में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने एलआईसी के फैसले को सही ठहराया। कोर्ट ने तीन महत्वपूर्ण आधार बताए: छिपाई गई जानकारी ही बनी मृत्यु का कारण – बीमाधारक की मौत शराब के कारण हुई, जिसे उन्होंने आवेदन में छिपाया था। बीमा एक जोखिम मूल्यांकन का अनुबंध है – ऐसे में सही जानकारी देना अनिवार्य है। पॉलिसी का नेचर महत्वपूर्ण है – यह ‘कैश बेनिफिट’ स्कीम थी, जिसमें अगर बीमारी नशे की वजह से हुई हो तो बीमा कंपनी क्लेम देने के लिए बाध्य नहीं।