: इस साल मानसून ने पूरे भारत को अच्छी तरह भिगोया – उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम, हर कोने में झमाझम बारिश हुई। लेकिन अब मौसम विज्ञानियों की नजर एक और बड़े बदलाव पर है, जो आने वाली सर्दियों को लेकर गंभीर संकेत दे रहा है। संकेत मिल रहे हैं कि इस बार देश में कड़ाके की ठंड पड़ सकती है, और इसकी वजह है – ला-नीना (La Niña) का दोबारा सक्रिय होना।
अमेरिका की प्रतिष्ठित जलवायु एजेंसी NOAA (नेशनल ओशिएनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन) ने भविष्यवाणी की है कि इस साल के अंत तक ला-नीना की वापसी संभव है, जो भारत समेत एशिया के बड़े हिस्से में सर्दी के तीव्र प्रभाव के लिए जिम्मेदार हो सकती है।
क्या है ला-नीना और क्यों है यह महत्वपूर्ण?
ला-नीना एक प्राकृतिक मौसम चक्र है, जिसमें प्रशांत महासागर के मध्य हिस्से का पानी सामान्य से अधिक ठंडा हो जाता है। इसका सीधा असर पृथ्वी के वायुमंडलीय दबाव और मौसम के पैटर्न पर पड़ता है।
-भारत में यह तेज मानसून और कम तापमान लेकर आता है।
-दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के कई हिस्सों में यह सूखे की स्थिति उत्पन्न करता है।
-वैश्विक तापमान में भी यह हल्की गिरावट लाता है।
-इसके ठीक विपरीत, एल-नीनो के दौरान वही समुद्री क्षेत्र गर्म हो जाता है, जिससे भारत में गर्मी और सूखा बढ़ सकता है।
ठंड क्यों पड़ेगी ज्यादा?
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ला-नीना अगले कुछ महीनों में सक्रिय होता है, तो यह भारत की सर्दियों को अधिक तीव्र और लंबा बना सकता है। सर्दी की शुरुआत पहले हो सकती है और न्यूनतम तापमान सामान्य से नीचे गिरने की संभावना है।
-NOAA के मुताबिक, सितंबर से नवंबर के बीच ला-नीना के विकसित होने की संभावना 53% है।
-साल के अंत तक यह आंकड़ा 58% तक पहुंच सकता है।
-यदि यह चक्र सक्रिय रहा, तो इसका असर मार्च-अप्रैल तक जारी रह सकता है।
वैश्विक असर भी नजर आएगा
-ला-नीना के चलते सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, लैटिन अमेरिका, और अमेरिका के कुछ हिस्सों में भी मौसम में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा।
-अटलांटिक महासागर में तूफानों की संख्या और तीव्रता बढ़ सकती है।
-एशिया में बर्फबारी अधिक हो सकती है।
-अमेरिका के पश्चिमी हिस्सों में अत्यधिक ठंड और वर्षा देखने को मिल सकती है।
क्या यह ला-नीना पहले जितना शक्तिशाली होगा?
वैज्ञानिक इसे कमज़ोर या मॉडरेट इंटेंसिटी का ला-नीना मान रहे हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इसके असर को नज़रअंदाज़ किया जा सकता है। मौसम वैज्ञानिक इसे ‘ब्लूप्रिंट इफेक्ट’कह रहे हैं – यानी यह पूरी तरह से भविष्यवाणी नहीं करता, लेकिन मौसम का रुझान जरूर दिखाता है।