अदालत ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए जनहित याचिका को स्वीकार किया है और नगर निगम आयुक्त को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।3 जुलाई को ब्रिज पर सड़क का एक हिस्सा अचानक धंस गया, जिससे इसकी निर्माण गुणवत्ता पर सवाल उठने लगे। इसके बाद जागरूक नागरिकों जितेश धनवानी और मुकेश पुरी ने कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की। यह याचिका एडवोकेट विवेक पाराशर के माध्यम से जनप्रतिनिधित्व वाद के रूप में दायर की गई थी।सुनवाई सिविल न्यायाधीश पश्चिम, मनमोहन चंदेल की अदालत में हुई, जिसने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्काल सुनवाई के आदेश दिए और नगर निगम आयुक्त देशलदान को 24 घंटे के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया।3 जुलाई को सड़क का हिस्सा धंसने की घटना सिर्फ एक संकेत थी — याचिका में दावा किया गया कि ब्रिज के निर्माण में घटिया सामग्री और मानकों की अनदेखी की गई। याचिकाकर्ताओं ने यह भी आरोप लगाया कि निर्माण एजेंसियों और संबंधित अधिकारियों की लापरवाही ने अजमेर शहर को एक संभावित हादसे की ओर धकेल दिया है।इस घटना के बाद मामला और गंभीर हो गया जब शहरी विकास मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने 5 जुलाई को ब्रिज का निरीक्षण किया। उन्होंने मौके पर ही अधिकारियों को फटकार लगाई और कहा कि:मंत्री ने साफ किया कि ब्रिज निर्माण में कंप्रेशन टेस्टिंग, तकनीकी निरीक्षण, और गुणवत्ता नियंत्रण जैसी प्रक्रियाओं की घोर अनदेखी हुई है। उन्होंने आरएसआरडीसी और नगर निगम को निर्देश दिए कि एक विस्तृत तकनीकी रिपोर्ट तैयार कर जल्द से जल्द प्रस्तुत करें।
निरीक्षण के दौरान विधायक अनिता भदेल, उप महापौर नीरज जैन और भाजपा शहर अध्यक्ष रमेश सोनी भी मौजूद थे। सभी जनप्रतिनिधियों ने ब्रिज की बिगड़ती हालत और पूर्व में उठाए गए सवालों की अनदेखी पर कड़ी नाराजगी जाहिर की।नगर निगम अधिकारियों के मुताबिक, इस पूरे मामले की जांच अब दो स्तरों पर होगी — एक जिला प्रशासन द्वारा और दूसरी राज्य मंत्री स्तर पर गठित कमेटी द्वारा। जांच के बाद दोषियों की जिम्मेदारी तय की जाएगी और आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।
अब सभी की निगाहें नगर निगम आयुक्त के जवाब पर टिकी हैं, जिसे मंगलवार तक कोर्ट में पेश किया जाना है। यह मामला अब सिर्फ एक पुल की खराबी नहीं, बल्कि सार्वजनिक सुरक्षा, जवाबदेही और शासन की पारदर्शिता से जुड़ गया है।