उज्जैन। उज्जैन-इंदौर सिक्सलेन सड़क निर्माण परियोजना को लेकर विकास के दावे भले ही तेज हों, लेकिन इसके समानांतर विकराल हो रही ट्रैफिक अव्यवस्था आमजन की जिंदगी को घंटों जाम में उलझा रही है। 1692 करोड़ रुपये की यह सड़क परियोजना 35 प्रतिशत पूरी हो चुकी है, लेकिन निर्माण के दौरान ट्रैफिक डायवर्जन, मार्ग प्रबंधन और विकल्पों की योजना अधूरी और लापरवाह है। लोगों का कहना है कि उज्जैन-इंदौर रोड यातना का मार्ग बन गया है। श्रावण से पहले सुधार जरूरी है। आवश्यकता शहर के आंतरिक मार्गों पर यातायात प्रबंधन करने की भी है।
दिसंबर 2026 तक पूरी होनी है सड़क
मध्यप्रदेश सड़क विकास निगम (एमपीआरडीसी) द्वारा संचालित इस परियोजना का निर्माण जनवरी 2025 से शुरू हुआ। 25 मीटर चौड़ी सिक्सलेन सड़क दिसंबर 2026 तक पूरी होनी है। इसमें 8 फ्लायओवर, 70 कलवर्ट, नया त्रिवेणी पुल और हरिफाटक से इंदौर तक हाइब्रिड वार्षिकी माडल से निर्माण शामिल है। एप्रोच रोड सीमेंट-कांक्रीट की और मुख्य मार्ग डामर का होगा। रवि इन्फ्राबिल्ड कंपनी द्वारा किए जा रहे इस कार्य में कई स्थानों पर खुदाई, मुरम डालने और सड़क का कंक्रीट बेस नजर आने लगा है, लेकिन जन सुविधा की जिम्मेदारी अभी अधर में है।
वैकल्पिक मार्ग पर ट्रैफिक का दबाव
इंदौर के अरबिंदो अस्पताल से उज्जैन के महामृत्युंजय द्वार के बीच सड़क , पुल निर्माण चल रहा है। वैकल्पिक मार्ग पर ट्रैफिक का दबाव है। संकरे डायवर्जन, बिना संकेतक के मोड़, और मुरम बिछे अधूरे रास्ते रोजाना यात्रियों को मानसिक तनाव में डाल रहे हैं। इधर, एमपीआरडीसी के कार्यपालन यंत्री गगन भाबर ने व्यवस्था सुधार के लिए सिक्सलेन परियोजना मार्ग का निरीक्षण कर सुधार के संबंध में चर्चा की। ‘नईदुनिया’ से कहा समस्या के समाधान के लिए उपाय पर मंत्रण हो रही है।
आमजन की परेशानियां
– सुबह और शाम के समय ट्रैफिक जाम विकराल हो जाता है
– पैदल यात्रियों और स्कूल जाने वाले बच्चों को सर्वाधिक परेशानी
– वैकल्पिक मार्गों की दशा दयनीय
श्रावण की चुनौती और देवास बायपास के सबक
11 जुलाई से शुरू हो रहे श्रावण मास में महाकाल दर्शन और कांवड़ यात्राओं के लिए लाखों श्रद्धालु उज्जैन पहुंचेंगे। इस दौरान भारी संख्या में पैदल यात्री, बाइक राइडर्स और बसें इसी मार्ग से गुजरेंगी। वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह मार्ग दुर्घटना और आपात स्थिति का केंद्र बन सकता है। हाल ही में इंदौर-देवास बायपास पर 32 घंटे लंबे ट्रैफिक जाम में तीन लोगों की मृत्यु हुई। यह घटना उज्जैन-इंदौर रोड के लिए एक भविष्य की चेतावनी है। यदि अभी से डायवर्जन, संकेतक, पुलिस फोर्स और मेडिकल सपोर्ट प्लान नहीं किया गया, तो यहां भी हालात नियंत्रण से बाहर जा सकते हैं।
क्या है समाधान?
– डायवर्जन प्लान सार्वजनिक किया जाए।
– ट्रैफिक कंट्रोल के लिए अस्थायी पुलिस चौकियां लगें।
– वैकल्पिक मार्गों की मरम्मत हो।
– श्रावण मास के लिए विशेष ट्रैफिक रूट जारी किया जाए।
– कांवड़ यात्रियों के लिए सुरक्षा, पानी व मेडिकल सहायता की व्यवस्था हो।
टोल वसूली पर सवाल : जब सड़क टूटी हो, सफर धीमा हो तो क्यों भरें टैक्स
इंदौर-उज्जैन सिक्सलेन निर्माण के बीच रास्ता बार-बार टू लेन में सिमट जाता है, जगह-जगह डायवर्जन और अधूरी सड़कें हैं। ट्रैफिक जाम में एक घंटे का सफर तीन घंटे में बदल रहा है। ऐसे में यात्रियों ने सवाल उठाया है कि क्या ऐसे हालात में टोल टैक्स लेना जायज है। सुप्रीम कोर्ट की पूर्व गाइडलाइन कहती है कि यदि सड़क अधूरी या बाधित हो, तो टोल वसूली पर पुनर्विचार हो सकता है। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण भी कह चुका है कि “स्मूद, सेफ और फास्ट रूट ना हो, तो टोल रिव्यू हो सकता है।” यात्रियों की मांग है कि जब तक सफर सुगम न हो, टोल भी स्थगित हो।
महापौर का कहना
पूरे मामले में उज्जैन के महापौर मुकेश टटवाल का कहना है कि विकास का मार्ग तभी सार्थक है जब वह सुविधा का रास्ता बने, न कि अवरोध की दीवार। उज्जैन-इंदौर रोड पर अफसरों को चाहिए कि वे अब सिर्फ निर्माण की प्रगति नहीं, बल्कि जमीनी व्यवस्था की गुणवत्ता को भी प्राथमिकता दें। श्रावण जैसे आयोजनों से पहले अगर तैयारी नहीं हुई, तो सिक्सलेन की चमक जाम के अंधेरे में खो जाएगी।