Thursday, June 19, 2025
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अगले पांच सालों में भारत की आधी से ज्यादा आबादी गर्मी और बाढ़ के दोहरे खतरे में, दिल्ली समेत आठ बड़े शहरों पर अधिक खतरा

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नई दिल्ली |

मौजूदा समय में दिल्ली समेत उत्तर भारत भीषण गर्मी का सामना कर रहा है। बीते दशक में गर्मी और लू के दिनों में लगातार बढ़ोतरी होती जा रहा है। हाल ही में आई आईपीआई ग्लोबल और ईएसआरआई इंडिया की रिपोर्ट में सामने आया कि भारत में जलवायु परिवर्तन के चलते वर्ष 2030 तक अत्यधिक वर्षा (एक्सट्रीम रेनफॉल) की तीव्रता में 43% तक वृद्धि होने की आशंका है। वहीं, हीटवेव यानी भीषण गर्मी के दिन 2.5 गुना तक बढ़ सकते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 8 प्रमुख शहर दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, सूरत, ठाणे, हैदराबाद, पटना और भुवनेश्वर जलवायु परिवर्तन की दोहरी मार झेलेंगे। एक ओर भीषण गर्मी और दूसरी ओर अचानक और तेज बारिश। तटीय जिलों में गर्मी और नमी के चलते मानसून सीजन के दौरान भी तापमान कम नहीं होगा, जिससे कृषि, स्वास्थ्य और शहरों के बुनियादी ढांचे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

रिपोर्ट में बताया गया है कि 1993 से 2024 के बीच मार्च से सितंबर के महीनों में हीटवेव के दिनों में 15 गुना वृद्धि हुई है, जबकि पिछले 10 वर्षों में यह बढ़ोतरी 19 गुना रही है। यह स्पष्ट संकेत है कि भारत अब लंबी और अधिक तीव्र गर्मी का सामना कर रहा है। जैसे-जैसे भारत की ओर गर्मियों का रुझान बढ़ रहा है, देश के पूर्वोत्तर, पूर्वी, मध्य और उत्तर-पश्चिमी हिस्सों में आने वाले वर्षों में हीटवेव (लू) की घटनाएं बनी रहेंगी। 2030 तक भारत के 10 में से 8 जिले कई बार लगातार और अनियमित वर्षा की घटनाओं का सामना करेंगे। हाल के दशकों में इन चरम ताप और वर्षा घटनाओं की आवृत्ति, तीव्रता और अनियमितता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। लंबे समय तक चलने वाली हीटवेव की स्थिति अधिक बार, लगातार और अनियमित बारिश को जन्म दे सकती है।

विशेष रूप से चिंताजनक बात यह है कि गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय और मणिपुर जैसे राज्यों के 75% से अधिक जिलों में हीटवेव और अनियमित वर्षा की दोहरी मार पड़ेगी। मुंबई, चेन्नई, दिल्ली, सूरत, ठाणे, हैदराबाद, पटना और भुवनेश्वर जैसे शहरों में हीटवेव दिनों की संख्या दोगुनी होने की संभावना है। लंबे समय तक चलने वाली हीटवेव की स्थिति लगातार और अनियमित वर्षा की घटनाओं को और अधिक बार उत्पन्न कर सकती है।

विश्व बैंक के दक्षिण एशिया क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन और आपदा जोखिम प्रबंधन के प्रैक्टिस मैनेजर, आभास झा कहते हैं कि भारत पर गर्मी का बोझ इस दशक में तीन गुना बढ़ जाएगा, यहां तक कि मध्यम गर्मी के परिदृश्य में भी हाल ऐसे ही रहेंगे। साल-दर-साल बढ़ते हीटवेव और तापमान से इसका पता भी चलता है। इसे ठंडक प्राप्त करने की उच्च जलवायु लागत और भी गंभीर बना रही है। भारत की इसपर प्रतिक्रिया इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान और हीट एक्शन प्लान सराहनीय है। हालांकि, अब हमें गर्मी से निपटने के लिए अधिक समान, सक्रिय, रोकथाम आधारित और बहु-क्षेत्रीय समाधानों को प्राथमिकता देना होगा। यह रिपोर्ट 1993 से 2023 तक के आंकड़ों और भविष्यवाणियों पर आधारित है।

आईपीई ग्लोबल के सह-लेखक अविनाश मोहंती ने बताया कि बढ़ती हीटवेव की स्थितियां अधिक बार, लगातार और अनियमित वर्षा की घटनाओं को जन्म देंगी। अध्ययन में यह भी चेतावनी दी गई है कि भारत के 8 में से 10 जिले 2030 तक लगातार और अनियमित वर्षा की कई घटनाओं का सामना करेंगे। मोहंती के अनुसार पिछले कुछ दशकों में हीटवेव और भारी वर्षा की घटनाओं की आवृत्ति, तीव्रता और अनिश्चितता काफी बढ़ी है। हमने पाया कि भारत का मानसून सीजन अब गर्मी जैसे हालात दिखाता है, विशेषकर उन दिनों को छोड़कर जब बारिश नहीं होती।

इन जगहों पर गर्मी के साथ बारिश की दोहरी मार

अध्ययन से यह भी पता चला है कि भारत का मानसून मौसम अब गैर-वर्षा वाले दिनों को छोड़कर एक विस्तारित ग्रीष्म ऋतु जैसा अनुभव करा रहा है। गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु, ओडिशा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मेघालय और मणिपुर के 75 प्रतिशत से अधिक जिलों में 2030 तक हीट स्ट्रेस के कारण उत्पन्न असंगत और लगातार वर्षा की दोहरी मार देखने को मिलेगी। इन जिलों में मार्च, अप्रैल और मई महीनों के दौरान कम से कम एक बार हीटवेव की स्थिति बनने की संभावना है।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 2030 तक भारत के तटीय क्षेत्रों में जून-जुलाई-अगस्त-सितंबर के दौरान लू जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। अनुमान के अनुसार, तटीय जिलों में करीब 69% इलाके लंबे समय तक गर्मी की असहज स्थिति से प्रभावित होंगे, जो 2040 तक बढ़कर 79% तक पहुंच सकती है।

अविनाश मोहंती का कहना है कि कि इस अध्ययन के निष्कर्ष यह दर्शाते हैं कि किस तरह जलवायु परिवर्तन ने भारत को अत्यधिक गर्मी और वर्षा की मार के सामने ला खड़ा किया है। और यह स्थिति 2030 तक और भी गंभीर और विकट हो जाएगी, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों पर इसका सबसे अधिक प्रभाव देखने को मिलेगा।

किन स्थितियों में होता है हीटवेव का ऐलान

हीटवेव का ऐलान इन स्थितियों में होता हैआईएमडी का कहना है कि हीट वेव तब होता है, जब किसी जगह का तापमान मैदानी इलाकों में 40 डिग्री सेल्सियस, तटीय क्षेत्रों में 37 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी क्षेत्रों में 30 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाता है। जब किसी जगह पर किसी ख़ास दिन उस क्षेत्र के सामान्य तापमान से 4.5 से 6.4 डिग्री सेल्सियस अधिक तापमान दर्ज किया जाता है, तो मौसम एजेंसी हीट वेव की घोषणा करती है। यदि तापमान सामान्य से 6.4 डिग्री सेल्सियस अधिक है, तो आईएमडी इसे ‘गंभीर’ हीट वेव घोषित करता है। आईएमडी हीट वेव घोषित करने के लिए एक अन्य मानदंड का भी उपयोग करता है, जो पूर्ण रूप से दर्ज तापमान पर आधारित होता है। यदि तापमान 45 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाता है, तो विभाग हीट वेव घोषित करता है। जब यह 47 डिग्री को पार करता है, तो ‘गंभीर’ हीट वेव की घोषणा की जाती है।.

सबसे अधिक खतरे में ये राज्य

रिपोर्ट बताती है कि गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु, ओडिशा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मेघालय और मणिपुर इन राज्यों के 75% से अधिक जिले 2030 तक हीट स्ट्रेस और अनियमित वर्षा की दोहरी मार झेलेंगे। इन जिलों में मार्च, अप्रैल और मई में कम से कम एक बार लू की स्थिति अनिवार्य रूप से देखने को मिलेगी।

फसलों की पैदावार में हो सकती है गिरावट

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुमानों के अनुसार, यदि तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है, तो धान, गेहूं, सोयाबीन, सरसों, मूंगफली और आलू जैसी फसलों की पैदावार में 3 से 7 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है। इसके अलावा, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का अनुमान है कि भारत में 2030 तक 4 करोड़ से अधिक नौकरियों का नुकसान हो सकता है, जिसका कारण गंभीर हीटवेव होगी। अनुमान यह भी बताते हैं कि बढ़ती गर्मी के कारण भारत की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 2050 तक 2.8 प्रतिशत और 2100 तक 8.7 प्रतिशत की गिरावट हो सकती है, जिससे लोगों का जीवन स्तर भी नीचे जा सकता है।

हर साल लगभग 87 अरब अमेरिकी डॉलर का नुकसान

जलवायु चरम परिस्थितियों की तीव्रता वैश्विक स्तर पर जोखिम परिदृश्य को बदल रही है, जिससे गंभीर सामाजिक-आर्थिक परिणाम सामने आ रहे हैं। जर्मनवॉच (2020) के अनुसार, भारत जलवायु जोखिमों के लिहाज़ से सातवां सबसे अधिक संवेदनशील देश है और यह जलवायु-प्रेरित आपदाओं का लगातार सामना कर रहा है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार, भारत को अत्यधिक मौसमीय घटनाओं के कारण हर साल लगभग 87 अरब अमेरिकी डॉलर का नुकसान हो रहा है।

उत्पादकता पर असर

मौसम के बदलाव से एक तरफ जहां लोगों में पर्यावरण खराब होने से बीमारियां बढ़ रही है तो दूसरी तरफ आर्थिक और शारीरिक हानि भी हो रही है। हाल ही में एक रिपोर्ट में सामने आया है कि मौसम में हो रहे लगातार बदलाव की वजह से हर देश में रोजाना काम का कई घंटों का नुकसान होता है। नेचर जनरल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार भारत में इसकी वजह से काम में 14 वर्किंग दिन (आकलन 12 वर्किंग घंटों के आधार पर) का नुकसान हो जाता है।

नेचर जनरल में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में मौसम में हो रहे परिवर्तन की वजह से तीस फीसद काम का घाटा उठाना पड़ता है। मौसम वैज्ञानिकों ने चेताया है कि अगर यहीं हालात बनें रहे तो आने वाले समय में यह नुकसान बढ़ सकता है।

रिपोर्ट के अनुसार भारत में ग्लोबल वॉर्मिंग की मौजूदा स्थिति के अनुसार सालाना 100 बिलियन घंटों का नुकसान होता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि रिपोर्ट में वर्किंग घंटों का आकलन दिन में 12 घंटों के आधार पर किया गया है। अध्ययन में इसे सुबह सात बजे से लेकर शाम सात बजे तक माना गया है। निकोलस स्कूल ऑफ द इंवायरनमेंट, ड्यूक यूनिवर्सिटी के ल्यूक ए पार्संस ने ई-मेल के माध्यम से बताया कि भारत का लेबर सेक्टर काफी बड़ा है। ऐसे में इसका घाटा भी अधिक होगा। पार्संन ने कहा कि ग्लोबल वॉर्मिंग में अगर आने वाले समय में दो डिग्री का ईजाफा होता है तो काम की क्षति दोगुनी यानी 200 बिलियन घंटे सालाना हो जाएगी। इससे करीब एक माह के वर्किंग घंटों का नुकसान हो जाएगा जो एक बड़ा घाटा होगा। इसका सीधा असर किसी देश की इकोनॉमी पर भी पड़ेगा। पार्संस ने चेताते हुए कहा कि मौजूदा हालातों में जिस दर से ग्लोबल वॉर्मिंग में बढ़ोतरी हो रही है उसको ध्यान में रखते हुए हमने 4 डिग्री तापमान में बढ़ोतरीका आकलन किया है। इस स्थिति में भारत को 400 बिलियन वर्किंग घंटों का नुकसान होगा। पार्संस ने कहा कि इसके कारण भारत को 240 बिलियन डॉलर की परचेजिंग पावर पेरिटी (क्रय शक्ति समता (पीपीपी) के जरिए यह पता लगाया जाता है कि दो देशों के बीच मुद्रा की क्रयशक्ति में कितना अंतर या समता है। यह करेंसी एक्सचेंज रेट तय करने में भी भूमिका निभाती है।) का नुकसान उठाना पड़ता है।

सेहत पर पड़ेगा प्रतिकूल असर

दिल्ली मेडिकल काउंसिल की साइंफिक कमेटी के चेयरमैन डॉक्टर नरेंद्र सैनी के मुताबिक हमारे शरीर के ज्यादातर अंग 37 डिग्री सेल्सियस पर बेहतर तरीके से काम करते हैं। जैसे जैसे तापमान बढ़ेगा इनके काम करने की क्षमता प्रभावित होगी। बेहद गर्मी में निकलने से शरीर का तापमान बढ़ जाएगा जिससे ऑर्गन फेल होने लगेंगे। शरीर जलने लगेगा, शरीर का तापमान ज्यादा बढ़ने से दिमाग, दिल सहित अन्य अंगों की काम करने की क्षमता कम हो जाएगी।

यदि किसी को गर्मी लग गई है तो उसे तुरंत किसी छाया वाले स्थान पर ले जाएं। उसके पूरे शरीर पर ठंडे पानी का कपड़ा रखें। अगर व्यक्ति होश में है तो उसे पानी में इलेक्ट्रॉल या नमक-चीनी मिला कर दें। अगर आसपास अस्पताल है तो तुरंत उस व्यक्ति को अस्पताल ले जाएं।

समाधान के लिए क्या सिफारिशें?

  • क्लाइमेट रिस्क ऑब्जरवेटरी की स्थापना की जाए, ताकि देश स्तर पर वास्तविक समय में जोखिम का आकलन और पूर्व चेतावनी दी जा सके।
  • हीट रिस्क और भारी वर्षा जोखिम को कम करने के लिए वित्तीय साधनों को विकसित किया जाए।
  • जिलों में “हीट रिस्क चैंपियन” की नियुक्ति की जाए, जो जिला आपदा प्रबंधन समिति के साथ समन्वय कर स्थानीय स्तर पर रणनीतिक प्रतिक्रिया सुनिश्चित करें।
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