काकाटेल पक्षी की मौत को छिपाता रहा चिड़ियाघर प्रशासन

बाघ केसरी, भेड़ीया भैरवी, बाघिन शक्ति, तेंदुआ मोना की मौत के बाद पूरे प्रदेश में हड़कंप मच गया था। जांच को आई टीम ने बब्बर शेर पटौदी की हालत गंभीर देख उसे यहां से कानपुर चिड़ियाघर भेज दिया जिससे की चिड़ियाघर गोरखपुर में वन्यजीवों के मौतों की संख्या में कमी लाई जा सके।
अंतत: कानपुर जाने के बाद वहां पर पटौदी की भी मौत हो गई। इधर, बर्ड फ्लू की पुष्टि के बाद से चिड़ियाघर को लगातार सैनिटाइज किया जा रहा है, बाड़ों को चारों तरफ से ढक दिया गया है। इसी बीच 23 मई की रात में काकाटेल पक्षी की मौत हो गई। लेकिन चिड़ियाघर प्रशासन इस बात को छिपाता रहा और अपने वीडियो बाइट में इसके मरने का जिक्र नहीं किया।
प्रशिक्षु वनकर्मियों ने सीखा बर्ड फ्लू से बचाव का तरीका

कैंपियरगंज के भारीवैसी स्थित जटायु संरक्षण और प्रजनन केंद्र में प्रदेश के 84 प्रशिक्षु वनकर्मियों को प्रशिक्षित किया गया। उन्हें गिद्धों के प्राकृतिक महत्व, संरक्षण, बर्ड फ्लू बचाव समेत आदि की जानकारी दी गई। केंद्र के प्रभारी डा. दुर्गेश नंदन ने बताया कि प्रकृति को साफ सुथरा रखने और जानवरों से फैलने वाली जूनेटिक बीमारियों के प्रसार को रोकने में गिद्ध सहायक होते हैं।
उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में राज गिद्ध, हिमालयन गिद्ध, लांग बिल्डिंग गिद्ध, सेंनेरियस गिद्ध, यूरेशियन गिद्ध, वाइट रुम्पटड गिद्ध, इजिप्शियन गिद्ध, सिलिन्डरबिल्ड गिद्ध प्रजातियां पाई जाती हैं। उन्होंने प्रशिक्षुओं को बीमार पक्षियों को पहचानने, गिद्धों को सुरक्षित व हैंडलिंग करने तथा उनके प्राकृतिक आवास की रक्षा के उपाय के बारे में बताया।