लखनऊ
भारत के अंतरिक्ष मिशन में एक नया अध्याय जुड़ा, जब भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टन और अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) से उत्तर प्रदेश और केरल के छात्रों से सीधा संवाद किया। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से हुई इस बातचीत में छात्रों ने अंतरिक्ष में जीवन से जुड़ी जिज्ञासाओं पर प्रश्न पूछे, जिनका शुभांशु ने बेहद सहज और वैज्ञानिक अंदाज़ में उत्तर दिया।
शुभांशु शुक्ला 26 जून को एक्सियम मिशन-4 के तहत अंतरिक्ष में पहुंचे। उन्होंने स्पेसएक्स के फाल्कन-9 रॉकेट से जुड़े ड्रैगन कैप्सूल में सवार होकर अमेरिका के कैनेडी स्पेस सेंटर से उड़ान भरी थी। यह मिशन मौसम और तकनीकी दिक्कतों के चलते छह बार टला, लेकिन अंततः 25 जून को दोपहर 12 बजे रवाना हुआ। इस मिशन के साथ वे 41 साल बाद स्पेस में जाने वाले भारतीय बन गए।
बातचीत के दौरान एक छात्र ने पूछा, “अंतरिक्ष में सोते कैसे हैं?” जवाब में शुभांशु ने बताया कि अंतरिक्ष में न फर्श होता है, न छत। वहां गुरुत्वाकर्षण नहीं होता, इसलिए कोई दीवार पर सोता है तो कोई “छत” पर। लेकिन तैरते रहने से बचने के लिए खुद को खास पट्टियों से बांधकर सोना पड़ता है।
छात्रों की जिज्ञासा यह भी थी कि अंतरिक्ष यात्री खुद को फिट कैसे रखते हैं। शुभांशु ने कहा कि माइक्रोग्रैविटी में मांसपेशियां कमजोर हो सकती हैं, इसलिए नियमित रूप से एक्सरसाइज ज़रूरी है। वे योग का अभ्यास करते हैं और वहां मौजूद एक खास सीटलेस साइकिल का उपयोग करते हैं जिसमें पैडलिंग करने के लिए शरीर को खुद से बांधना पड़ता है।
मानसिक स्वास्थ्य पर बात करते हुए शुभांशु ने बताया कि तकनीक के जरिए परिवार और दोस्तों से संपर्क में रहने से मनोबल बना रहता है। यह जुड़ाव स्पेस मिशन के दौरान मानसिक संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है।
उन्होंने यह भी साझा किया कि अंतरिक्ष में कुछ समय बाद शरीर माइक्रोग्रैविटी के माहौल में ढल जाता है, लेकिन धरती पर लौटने के बाद फिर से सामान्य गुरुत्वाकर्षण के अनुरूप खुद को ढालना एक बड़ी चुनौती होती है। इसके लिए वैज्ञानिक प्रक्रिया और विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
करीब 150 यूपी के छात्र और केरल के कोझिकोड जिले के विद्यार्थी इस ऐतिहासिक संवाद का हिस्सा बने। शुभांशु द्वारा स्पेस स्टेशन के अंदर गेंद से खेलते हुए किया गया प्रदर्शन बच्चों को रोमांचित कर गया।
इस संवाद ने न सिर्फ विज्ञान को लोकप्रिय बनाया, बल्कि युवाओं को अंतरिक्ष अनुसंधान में करियर की संभावना की प्रेरणा भी दी।