राजस्थान के बारां जिले में स्थित छबड़ा मोतीपुरा थर्मल पावर प्लांट को छत्तीसगढ़ की खदानों से मिलने वाले कोयले की आपूर्ति पर गंभीर संकट मंडरा रहा है। केंद्र सरकार के कोयला मंत्रालय ने अब इस पावर प्लांट को कोयले की सप्लाई जारी रखने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है, जिससे राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम के लिए एक नई चुनौती खड़ी हो गई है।
यह मामला छबड़ा पावर प्लांट से जुड़ी एक प्रस्तावित नई संयुक्त कंपनी से संबंधित है। वर्तमान में यह प्लांट राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम के अंतर्गत आता है और उसे छत्तीसगढ़ में आवंटित खदानों से कोयला प्राप्त हो रहा है। लेकिन अब जब इस प्लांट को एक नई जॉइंट वेंचर कंपनी के अंतर्गत लाने की योजना बनाई जा रही है, तो नियमों के मुताबिक, वह नई कंपनी उन खदानों से कोयला नहीं ले सकती, क्योंकि खनन आवंटन केवल उत्पादन निगम को दिया गया था।
कोयला मंत्रालय ने इन नियमों का हवाला देते हुए राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम के उस अनुरोध को खारिज कर दिया है, जिसमें प्लांट को कोयला आपूर्ति जारी रखने की मांग की गई थी। इस फैसले के बाद से निगम के अधिकारियों से लेकर राज्य ऊर्जा विभाग तक चिंता का माहौल बना हुआ है।
अब राज्य सरकार के प्रतिनिधिमंडल द्वारा जल्द ही दिल्ली जाकर कोयला मंत्रालय के अधिकारियों से वार्ता की जाएगी, ताकि मंत्रालय की आपत्तियों को दूर किया जा सके और कोयले की आपूर्ति पर फिर से सहमति बन सके।
स्थिति की गंभीरता को समझें तो मौजूदा समय में छबड़ा प्लांट की कुल उत्पादन क्षमता 2320 मेगावाट है। प्लांट के तहत नई योजना के तहत दो और यूनिट लगाने की तैयारी है, जिनकी क्षमता क्रमशः 660 मेगावाट या 800 मेगावाट हो सकती है। इस पर अंतिम फैसला होना बाकी है।
वर्तमान में प्लांट को हर साल करीब 70 लाख टन कोयला छत्तीसगढ़ की खदानों से और 23 लाख टन कोल इंडिया से मिल रहा है। यदि दो नई यूनिटें जुड़ती हैं तो कुल कोयला आवश्यकता में 50 लाख टन की और बढ़ोतरी होगी। ऐसे में खदान आवंटन से जुड़ी बाधाएं यदि दूर नहीं हुईं, तो प्लांट का भविष्य संकट में आ सकता है।
कोयले की निर्बाध आपूर्ति किसी भी थर्मल पावर प्लांट के संचालन के लिए सबसे जरूरी शर्त होती है। लेकिन खदान आवंटन से संबंधित यह तकनीकी अड़चन अब छबड़ा पावर प्लांट के विस्तार और संचालन दोनों को प्रभावित कर सकती है।
सरकार और संबंधित संस्थानों के बीच संवाद और समाधान की दिशा में त्वरित कदम उठाना अब जरूरी हो गया है, वरना राजस्थान की ऊर्जा आवश्यकताओं पर भी इसका सीधा प्रभाव पड़ सकता है।