बालाघाट। बालाघाट (मध्य प्रदेश) के वनग्राम सोनेवानी की स्थिति राज्य के शिक्षा तंत्र की एक अलग ही तस्वीर पेश करती है। घने जंगलों के बीच बसे इस गांव में शासकीय प्राथमिक विद्यालय वर्ष 1997 में प्रारंभ हुआ था। शुरुआत में यहां 20 से अधिक छात्रों की उपस्थिति रहती थी, लेकिन पिछले 12 वर्षों से छात्र संख्या दहाई का आंकड़ा भी नहीं छू सकी।
नया शैक्षणिक सत्र (2025-26) शुरू हो चुका है और इस बार भी सिर्फ 4 छात्र ही दर्ज हैं। इसके बावजूद स्कूल में 2 शिक्षक तैनात हैं। एक प्रधानपाठक और एक सहायक शिक्षक।
हर साल घटती गई संख्या
वर्ष 2014-15 से लेकर अब तक कभी 3 तो कभी 6 बच्चों की उपस्थिति रही है। आंकड़ों पर नजर डालें तो-
- 2014-15: 5 छात्र
- 2015-16: 3 छात्र
- 2016-17: 3 छात्र
- 2017-18: 3 छात्र
- 2018-19: 5 छात्र
- 2019-20: 3 छात्र
- 2020-21: 6 छात्र
- 2021-22: 6 छात्र
- 2022-23: 5 छात्र
- 2023-24: 3 छात्र
- 2024-25: 4 छात्र
- 2025-26: 4 छात्र
इस गांव में कुल 12 घर हैं, जहां आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं। छोटे बच्चे कम हैं और कई परिवार अपने बच्चों को शिक्षा के लिए पास के बड़े गांवों में भेजना पसंद करते हैं।
शिक्षकों की स्थिति
इस स्कूल में प्रधानपाठक चतुर्भुज राणा 28 वर्षों से कार्यरत हैं, जबकि शिक्षक सुरेंद्र अमोलिया पिछले 10 वर्षों से सेवाएं दे रहे हैं। दोनों ही शिक्षक स्कूल के चार बच्चों को पूरी गंभीरता से पढ़ा रहे हैं। एक कक्षा पहली में, दो कक्षा दूसरी में और एक कक्षा तीसरी में। कक्षा चौथी और पांचवीं में कोई भी विद्यार्थी नहीं है।
प्रति विद्यार्थी पर लाखों का खर्च
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस स्कूल में प्रति वर्ष करीब एक लाख रुपये प्रति छात्र खर्च हो रहे हैं, जिसमें शिक्षकों का वेतन, मध्याह्न भोजन, स्टेशनरी और अन्य सुविधाएं शामिल हैं। यानी कुल मिलाकर 4 छात्रों के लिए सरकार करीब 4 लाख रुपये सालाना खर्च कर रही है।