शव के महुआ बाग पहुंचते ही पूरा मोहल्ला उमड़ पड़ा। हर कोई मनीषा का अंतिम दर्शन करना चाह रहा था मगर ताबूत को खोला जाना संभव नहीं था।
घर के आंगन में ताबूत में बंद शव को रखा गया। मनीषा के घर उसके सभी रिश्तेदार पहुंचे हुए थे। सब की आंखे नम थी।
पोती काशव देख दादी अंतिम दर्शन की जिद करने लगी, मगर लोगों ने किसी प्रकार संभाला और फिर ताबूत पर कफन उनके हाथों से रखवा अंतिम विदाई दिलाई।
मां, चाची, चाचा, भाई-बहन सब रो रहे थे। बारी बारी से सब ने ताबूत के ऊपर कफन एवं पुष्प रख अंतिम विदाई दी। करीब दो घंटे तक घर में अंतिम विदाई का विघि विधान होता रहा।
इस दौरान शव के पास मनीषा के पिता राजू थापा और भाई साथ रहे। पिता रह रहकर दहाड़ मारकर रोते, भाई की सिसकिया बंद नहीं हो रही थी।
मां को रिश्तेदार की महिलाएं संभालने के लिए लगी थी। वह रह रह कर बेहोश हो जाती। सभी मां को पकड़ कर शव तक लाए। शव को पिता ने कंधा देते हुए घर के बाहर किया, उनके साथ पुत्र भी था।
घर की महिलाएं मां लक्ष्मी को पकड़ कर लेकर आई और बोली, चलो अब बेटी को अंतिम विदाई दे दो। बेटी का शव शव वाहन पर रखा जा चुका था। मां बेटी को अंतिम विदाई दी। शव वाहन पर रिश्ते के भाई सवार थे।
शव वाहन आगे बढ़ी तो मां को सभी पकड़ घर लेकर आये। शव वाहन के पीछे पिता कार से चल रहे थे। उनकी आंखों से आंसू बह रहा था।
मां घर में प्रवेश करते बोली, चली गई मनीषा सब को रूला कर अब वह कभी लौट कर नहीं आयेगी। पहले वह आती थी तब घर में बहार आ जाता था। आज बहारों की रानी हमेशा हमेशा के लिए चली गई।