1092
Shares
पटना
प्राथमिकी से लेकर न्यायालय की कार्यवाही की प्रक्रिया में एक जुलाई 2024 से आए बदलाव का सकारात्मक असर नजर आने लगा है।
भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की जगह भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत दर्ज मामलों की सुनवाई विलंब नहीं हो रहा।
कारण है कि बीएनएस के साथ भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) को भी प्रभावी किया गया।
इलेक्ट्रानिक साक्ष्य को मान्यता, साक्ष्य के आधार पर अभियुक्त की गिरफ्तारी तथा चार्जशीट, फोरेंसिक व पोस्टमार्टम रिपोर्ट की सीमा तय किए जाने से मामलों की सुनवाई जल्द शुरू होने लगी है।
इन तीनों बदलाव को लागू हुए एक वर्ष भी पूरा नहीं हुआ और 23 कांडों में निचली अदालत ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुना दिया। इससे पीड़ित पक्ष को काफी फायदा हुआ है। साथ ही न्यायालय पर लोगों का भरोसा भी बढ़ा है।
आर्म्स एक्ट और चर्चित हत्याकांड में स्पीडी ट्रायल
दानापुर के चर्चित दही गोप और उनके सहयोगी की हत्या मामले को भी स्पीडी ट्रायल के तहत सुनवाई के लिए प्रस्ताव भेजा गया है।
सगुना मोड़ के पास आभूषण शोरूम लूटकांड में भी पुलिस ने चार्जशीट भेज दी है। ऐसे ही आर्म्स एक्ट और हत्या के 32 मामलों की सुनवाई स्पीडी ट्रायल के तहत कराई जा रही है।
दुल्हिन बाजार के भी एक हत्याकांड में स्पीडी ट्रायल शुरू हो गई है। पहले के मामलों को मिला कर जिले भर की सभी अदालतों में 431 मामलों के स्पीडी ट्रायल चल रहे हैं।
कोतवाली थाना क्षेत्र के एक होटल में महिला सिपाही की हत्या के मामले में भी सुनवाई शुरू होने वाली है। पुलिस ने घटनास्थल से बरामद कट्टे को बैलिस्टिक जांच के लिए भेजा था।
फोरेंसिक जांच रिपोर्ट मात्र 15 दिनों में पुलिस को मिल गई थी। यही कारण रहा कि पुलिस ने वारदात के एक महीने के भीतर आरोपित पति के विरुद्ध चार्जशीट दायर कर दी थी। 56 मामलों में सुनवाई लगभग पूरी हो चुकी है।
जल्द चार्जशीट कराने को अनुसंधान पदाधिकारी नियुक्त
गौर हो कि नए कानून लागू होने के बाद समय पर अनुसंधान पूरा कर आरोपपत्र न्यायालय में समर्पित किया जा सके, इसके लिए प्रत्येक थाने में इंस्पेक्टर स्तर के अनुसंधान पदाधिकारी प्रतिनियुक्त किए गए हैं।
अनुसंधान पर इसका भी अच्छा प्रभाव पड़ा है। साक्ष्य सुरक्षित रख कर अनुसंधानकर्ता के माध्यम से कोर्ट को फोरेंसिक व पोस्टमार्टम रिपोर्ट एवं चार्जशीट उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी उनके जिम्मे है।
इससे बैकलाग काफी हद तक समाप्त हुआ है। औसत जिले में प्रतिवर्ष 40 हजार कांड प्रतिवेदित होते हैं। 11 महीनों में 36,835 प्राथमिकी दर्ज हुई है, जिसमें लगभग साढ़े छह हजार मामले उत्पाद अधिनियम से जुड़े हैं। इनमें सात हजार कांडों की सुनवाई शुरू हो गई है।