कोर्ट ने आगे कहा कि हमारे सशस्त्र बलों में सभी धर्मों, जातियों, पंथों, क्षेत्रों और आस्थाओं के कर्मी शामिल हैं, जिनका एकमात्र उद्देश्य देश को बाहरी आक्रमणों से बचाना है, और इसलिए वे अपने धर्म, जाति या क्षेत्र से विभाजित होने के बजाय अपनी वर्दी से एकजुट हैं।
सैमुअल कमलेसन ने याचिका में बिना पेंशन और ग्रेच्युटी के भारतीय सेना से बर्खास्तगी के आदेश को चुनौती दी थी। साथ ही सेवा में बहाली की भी मांग की थी। कमलेसन को मार्च 2017 में भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट के पद पर 3 कैवेलरी रेजिमेंट में कमीशन मिला था। उनका कहना था कि उनकी सिख रेजिमेंट ने अपनी धार्मिक जरूरतों और परेड के लिए केवल एक मंदिर और एक गुरुद्वारा बनाए रखा है, न कि एक सर्व धर्म स्थल जो सभी धर्मों के लोगों की सेवा करता हो।
उन्होंने कहा कि परिसर में कोई चर्च नहीं है। उन्होंने कहा कि वे अपने सैनिकों के साथ साप्ताहिक धार्मिक परेड और त्योहारों के लिए मंदिर और गुरुद्वारा जाते थे। उन्होंने पूजा या हवन या आरती आदि के दौरान मंदिर के सबसे भीतरी हिस्से या गर्भगृह में प्रवेश करने से छूट मांगी थी। दूसरी ओर, सेना ने तर्क दिया कि रेजिमेंट में शामिल होने के बाद से कमलेसन रेजिमेंटल परेड में शामिल नहीं हुए जबकि कमांडेंट और अन्य अधिकारियों ने उसे रेजिमेंटेशन के महत्व को समझाने के लिए कई प्रयास किए।
दोनों पक्षों को सुनने का बाद कोर्ट ने कहा कि सशस्त्र बलों में रेजिमेंटों के नाम ऐतिहासिक रूप से धर्म या क्षेत्र से जुड़े हो सकते हैं, लेकिन इससे संस्थान या इन रेजिमेंटों में तैनात कर्मियों की धर्मनिरपेक्ष भावना कम नहीं होती। पीठ ने कहा कि कमलेसन ने अपने धर्म को अपने वरिष्ठ के वैध आदेश से ऊपर रखा, जो स्पष्ट रूप से अनुशासनहीनता का कार्य था।