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मुजफ्फरपुर
बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव ने कहा कि बहुसंख्यक होने के बाद भी आपकी उपेक्षा होती रही। आपको अधिकार नहीं दिया गया। आप सब कुछ सहते रहे।
आपने अपनी सरकार से सवाल क्यों नहीं पूछा? अपनी उपेक्षा पर आपको गुस्सा क्यों नहीं आता? आप सवाल पूछेंगे तभी सरकार आपकी ओर ध्यान देगी। गुस्सा करेंगे तभी अधिकार मिलेगा।
सरकार समाज को झुनझुना दिखाकर रोटी छिन लेती है और हम झुनझुना बजाने लगते हैं। उन्होंने ये बातें रविवार को जागृत की ओर से मुजफ्फरपुर क्लब के डॉ. आंबेडकर सभागार में जातीय गणना एवं आरक्षण की सीमा: समाज एवं सरकार की भूमिका विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार में मुख्य वक्ता के रूप में कहीं।
उन्होंने कहा कि उनके संघर्षों का ही परिणाम है कि केंद्र सरकार ने जातीय जनगणना कराने का निर्णय लिया। जब तक जाति गणना नहीं होती और उसके आधार पर बहुसंख्यक समाज को उनका हक नहीं दिया जाता तक यह संघर्ष जारी रहेगा।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार एक साजिश के तहत सरकारी विभागों का निजीकरण कर रही है, ताकि बहुसंख्यक को आरक्षण के लाभ से वंचित किया जा सके।
उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार एवं उनके दो-दो उप मुख्यमंत्री बजट को लेकर बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं, लेकिन बजट में उपेक्षित समाज के लिए क्या किया, यह नहीं बता रहे।
नीतीश सरकार ने जाति आधारित गणना रिपोर्ट को कूड़ेदान में डाल दिया। उनकी सरकार बनेगी तो जाति गणना के आधार पर बजट बनाएगी ताकि विकास की रोशनी उन लोगों तक पहुंचे सके जो बहुसंख्यक होते हुए भी आर्थिक व सामाजिक रूप से पीछे रहे गए। उन्होंने कहा कि राजद एवं लालू प्रसाद यादव ने कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।
कार्यक्रम में शामिल राज्यसभा सदस्य संजय प्रसाद यादव ने कहा कि सरकार बजट के साइज पर बात करती है, लेकिन उसमें आपके लिए क्या है, वह नहीं बताती है।
उन्होंने कहा कि तेजस्वी यादव के संघर्ष का परिणाम है कि आज केंद्र सरकार जातीय गणना को तैयार हुई है। सेमिनार की अध्यक्षता प्रो. विजय कुमार एवं संचालन सचिव डॉ. सुशांत कुमार ने की।
सेमिनार में संरक्षक सदस्य बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा. अमरेंद्र नारायण यादव, प्रो. विजय कुमार जायसवाल, पूर्व सांसद डा. अर्जुन राय, पूर्व सांसद अजय निषाद, विधायक विजेंद्र चौधरी, पूर्व मंत्री इसराइल मंसूरी, प्रो. गोपी किशन, डॉ. चंदन यादव शामिल रहे। सेमिनार में उत्तर बिहार के विभिन्न जिलों के बुद्धिजीवियों ने भाग लिया।
सिर्फ नौकरी नहीं, जमीन में भी चाहिए हिस्सेदारी
किरोड़ीमल कॉलेज, दिल्ली के प्राध्यापक डॉ. जीतेंद्र मीणा ने कहा है कि बहुसंख्यक होते हुए भी पिछड़ा समाज को उनकी संख्या के हिसाब से सुविधा नहीं दी गई। उनको उपेक्षित रखा गया।
आरक्षण का मतलब हम सिर्फ नौकरी समझते हैं, लेकिन हमें नौकरी नहीं जमीन में भी आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी चाहिए।
कहा जाता है कि जाति में बंटने से हिंदू कमजोर हो जाएगा। समाज में टकराव बढ़ेगा। उनका डर है कि जाति गणना से आरक्षण का जिन्न बाहर निकल आएगा।
देश में राम की चिंता रमुआ की नहीं
नगालैंड केंद्रीय विश्वविद्यालय लुमायी के प्राध्यापक प्रो. दीपक भास्कर ने कहा कि देश में राम की चिंता की होती है, लेकिन रमुआ की नहीं। रमुआ बहुसंख्यक पिछड़ी जाति से आता है, लेकिन उसके बारे में सरकार नहीं सोचती।
उसके बारे में सोची होती तो न जाति गणना की जरूरत होती और न ही आरक्षण की। आजादी के बाद से अब तक रमुआ का विकास नहीं हुआ।
इसलिए जाति गणना संख्या गिनने के लिए बल्कि उस सत्य की खोज एवं इंसान को इंसान का दर्जा देने की प्रथम सीढ़ी है।
जातीय गणना राजनीतिक नहीं सामाजिक
जन मीडिया व मास मीडिया के संपादक डॉ. अनिल चमड़िया ने कहा कि जाति गणना राजनीतिक नहीं सामाजिक विषय है।
बिना समाज को समझे सरकार विकास का लाभ सही लोगों तक नहीं पहुंचा सकती है। जाति गणना किस इरादे से कराई जाए यह महत्वपूर्ण है। यदि आपका उद्देश्य सही है तो जाति गणना से किसी को नुकसान नहीं होगा।