श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख उच्च न्यायालय श्रीनगर शाखा के न्यायमूर्ति संजय धर ने फैसला दिया कि एक नीड-बेस्ड श्रमिक को तब तक सेवा में बने रहने का कानूनी अधिकार नहीं है, जब तक नियोक्ता यह निर्णय न कर ले कि उसकी सेवाओं की अब आवश्यकता नहीं है।
याचिकाकर्ताओं ने 1998 में अस्थायी श्रमिक के रूप में कार्य करना शुरू किया था। उन्होंने 2015 में भेदभावपूर्ण तरीके से बर्खास्तगी के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। इससे पहले उच्च न्यायालय ने 27 अप्रैल 2017 को एक आदेश जारी किया था, जिसमें याचिकाकर्ताओं से कहा गया था कि यदि कोई आवश्यकता हो तो उन्हें पुनः अस्थायी श्रमिक के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। याचिकाकर्ताओं ने पुनः 2017 में याचिका दायर की और उनसे संबंधित कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज प्राप्त किए थे। इसके बाद उन्होंने यह मांग की थी कि उन्हें उसी तरह माना जाए जैसे अन्य समान श्रमिक जो नियोक्ता द्वारा तैयार की गई अस्थायी श्रमिकों की सूची में शामिल किए गए हैं। हालांकि, उच्च न्यायालय ने इन सभी याचिकाओं को खारिज करते हुए नियोक्ता के निर्णय को सही ठहराया।