नई दिल्ली में भैरों मार्ग अंडरपास अब बड़े वाहनों के लिए उपलब्ध नहीं होगा। 2023 में यमुना की बाढ़ के कारण आई तकनीकी खराबी के चलते इसकी चौड़ाई और ऊंचाई कम की जाएगी। दिल्ली सरकार ने केंद्रीय मंत्रालय को पत्र भेजा है। आईआईटी की सलाह से कास्ट-इन-सिटू तकनीक का उपयोग होगा। अंडरपास केवल हल्के वाहनों के लिए ही उपलब्ध होगा। भैरों मार्ग अंडरपास के एक भाग का उपयोग बड़े वाहनों के लिए नहीं हो सकेगा। मथुरा रोड से आकर रिंग रोड पर सराय काले खां की ओर जाने वाले बड़े वाहन इसका उपयोग नहीं कर सकेंगे।दरसअल 2023 में आ चुकी यमुना की बाढ़ का पानी इसमें घुस जाने से आ चुकी तकनीकी अड़चन के कारण अंडरपास की चौड़ाई और ऊंचाई घटाई जाएगी। दिल्ली सरकार ने इस अंडरपास के लिए फंड देने वाले केंद्रीय आवासन एवं शहरी विकास मंत्रालय को इस बारे में पत्र भेजा है। दिल्ली सरकार केंद्र की अनुमति का इंतजार कर रही है।
जिस भैरों मार्ग, रिंग रोड टी-प्वाइंट पर इस अंडरपास का निर्माण हो रहा है। इसके ऊपर से प्रमुख रेलवे लाइनें गुजर रही हैं।इसके चलते दिन भर इस पर ट्रेनों का आवागमन रहता है। इसका काम भी जून 2022 तक पूरा किया जाना था और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा प्रगति मैदान सुरंग सड़क सहित पांच अंडरपास के साथ इसका भी उद्घाटन किया जाना था। मगर यह हीला- हवाली और रेलवे से काम करने की अनुमति के लिए समय कम मिलने से 2023 में भी पूरी तरह नहीं बन सका।
जुलाई 2023 में यमुना में आई बाढ़ का पानी इसके अंदर भर गया। उस समय तक इस अंडरपास की एक तरफ की सड़क तैयार हो चुकी थी। जिस बॉक्स पुशिंग तकनीक से इसका निमार्ण किया जा रहा था, बाढ़ से उसके कई बॉक्स जमीन में धंस गए। 110 मीटर लंबाई में से अब केवल 28 मीटर का काम शेष है। उसके बाद से काम ठप है। इसकी तैयार हो चुकी एक तरफ की सड़क पर ही भैरों मार्ग से रिंग रोड और रिंग रोड से भैरों मार्ग पर जाने के लिए यातायात संचालित हो रहा है। इसे बनाने में केंद्रीय आवासन एवं शहरी विकास मंत्रालय 80 प्रतिशत राशि खर्च कर रहा है, जबकि 20% फंड आइटीपीओ का खर्च हो रहा है।
लोक निर्माण मंत्री प्रवेश वर्मा ने कहा है कि हमने आइआइटी दिल्ली, मुंबई और सेंट्रल बिल्डिंग रिचर्स इंस्टीट्यूट (सीबीआरआई) जैसे शीर्ष संस्थानों से सलाह ली है और उनके सुझावों के आधार पर कास्ट-इन-सिटू तकनीक अपनाने का निर्णय लिया है। यह तरीका रेलवे लाइन को बिना छेड़े सुरंग निर्माण पूरा कर सकेगा और सुरक्षा की दृष्टि से बेहतर है। उन्होंने कहा कि केंद्र से मंजूरी मिलते ही कार्य मानसून के बाद शुरू होगा, जिसे आठ महीने में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। भैरों मार्ग अंडरपास का मामला यह दिखाता है कि बड़े बुनियादी ढांचे की परियोजनाएं कितनी जटिल हो सकती हैं – चाहे बात रेलवे से अनुमति लेने की हो, या फिर अप्रत्याशित प्राकृतिक आपदा की।
अब जबकि सरकार ने नई तकनीक अपनाने का निर्णय ले लिया है, उम्मीद है कि यह कार्य समय पर पूरा होगा और दिल्लीवासियों को एक सुरक्षित, आधुनिक और निर्बाध अंडरपास मिलेगा। लेकिन तब तक यात्रियों को कुछ असुविधाएं झेलनी पड़ सकती हैं, खासकर बड़े वाहनों को।