त्रिनिदाद में भारतीय प्रवासियों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भावनात्मक और सांस्कृतिक रूप से गहरा संदेश दिया। उन्होंने भारतीय मूल के लोगों के संघर्ष, धैर्य और संस्कृति से जुड़ाव को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि उन्होंने भले ही भारत की भूमि छोड़ी, लेकिन अपनी संस्कृति और संस्कार कभी नहीं छोड़े।
प्रधानमंत्री ने यह संबोधन त्रिनिदाद और टोबैगो की राजधानी पोर्ट ऑफ स्पेन में दिया, जहां वे शुक्रवार तड़के पहुंचे। एयरपोर्ट पर उनका स्वागत पूर्व प्रधानमंत्री कमला परसाद-बिसेसर, उनके 38 मंत्रियों और चार सांसदों ने किया।
अपने भाषण की शुरुआत में मोदी ने कहा, “आपके पूर्वजों ने जिन चुनौतियों का सामना किया, वे किसी के भी हौसले को तोड़ सकती थीं। लेकिन उन्होंने उम्मीद के साथ वह सब सहा और डटे रहे।” उन्होंने इस यात्रा को एक संघर्ष से भरी लेकिन प्रेरणादायक गाथा बताया, जो केवल श्रमिकों की नहीं, बल्कि एक सभ्यता के दूतों की कहानी है।
मोदी ने आगे कहा, “आप गंगा और यमुना को पीछे छोड़ आए, लेकिन अपने साथ रामायण को दिल में लेकर आए। आप सिर्फ काम की तलाश में नहीं निकले थे, बल्कि संस्कृति, धर्म और संस्कारों के वाहक बनकर निकले थे।”
प्रधानमंत्री ने यह भी बताया कि कैसे त्रिनिदाद में भारतीयता आज भी जीवित है। “बनारस, पटना, कोलकाता और दिल्ली हमारे देश के शहर हैं, लेकिन यहां उनकी सड़कों के नाम भी वही हैं। नवरात्रि, महाशिवरात्रि, जन्माष्टमी जैसे त्योहार यहां भी पूरे उल्लास के साथ मनाए जाते हैं।”
लोक-संस्कृति की बात करते हुए उन्होंने चौताल और भटक गाने का जिक्र किया और कहा कि ये परंपराएं न सिर्फ बची हैं, बल्कि फली-फूली भी हैं। उन्होंने भारतीय युवाओं की आंखों में जिज्ञासा और जुड़ाव की भावना की सराहना की, जो अपनी विरासत को जानने और समझने को उत्सुक हैं।
प्रधानमंत्री ने इस मौके पर एक महत्वपूर्ण घोषणा भी की। उन्होंने बताया कि भारतीय मूल की छठी पीढ़ी तक को अब ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (OCI) कार्ड मिलेगा। यह निर्णय प्रवासी भारतीयों और भारत के बीच संबंधों को और मजबूती देगा।
अपने पहले के दौरे को याद करते हुए मोदी ने कहा, “25 साल पहले मैं यहां आया था। तब से अब तक भारत और त्रिनिदाद के रिश्ते और गहरे हुए हैं।” उन्होंने इसे भौगोलिक सीमाओं से परे एक आत्मिक जुड़ाव बताया।
यह पूरा संबोधन भारत और उसके प्रवासियों के बीच के मजबूत रिश्ते का प्रतीक बना, जो न सिर्फ खून का, बल्कि संस्कृति, परंपरा और पहचान का रिश्ता है।