पहले ज्यादातर मरीज 50 वर्ष वाले होते थे, लेकिन अब यह बीमारी 40 से 45 वर्ष के लोगाें में हो रही है। कई बार मरीज पेशाब में खून आना, कमर में भारीपन या हल्का दर्द, थकावट, अचानक वज़न कम होने जैसे लक्षण को टाल देते हैं, जो बाद में खतरनाक साबित होते हैं। समय पर बीमारी पकड़ में आने पर इलाज होता है।
उन्होंने कहा कि किसी के परिवार में पहले किडनी की बीमारी रही हो या व्यक्ति धूमपान करते हैं तो उन्हें साल में एक बार अल्ट्रासाउंड कराना चाहिए। वहीं, मैक्स स्पेशियलिटी अस्पताल के सीनियर कंसलटेंट डॉ. सुदीप बोडडुलूरी का कहना है कि किडनी कैंसर के कई कारण हैं, जिनमें परिवार में किडनी कैंसर का इतिहास, धूमपान, अधिक वजन या मोटापा, उच्च रक्तचाप शामिल हैं।
जब किडनी की कोशिकाएं असामान्य रूप से बढ़कर ट्यूमर बनाती हैं। तो यह किडनी के काम को प्रभावित कर सकता है। धीरे-धीरे यह शरीर के अन्य भागों में फैल सकता है। उन्होंने अभिभावकों को जागरूक करते हुए बताया कि बच्चों में विल्म्स ट्यूमर नाम का कैंसर होता है। कोई भी लक्ष्य मिलने पर बच्चों की तुरंत जांच कराएं।