राजनीतिक मामलों में सुनाए अहम फैसले
- सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस गवई ने राजनीति से जुड़े कई मामलों में फैसले सुनाए, इनमें न्यूज वेबसाइट न्यूजक्लिक के संस्थापक संपादक प्रबीर पुरकायस्थ और दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से जुड़े मामले शामिल हैं।
- इन मामलों में जस्टिस गवई के नेतृत्व वाले पीठ ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और धन शोधन निवारण अधिनियम जैसे कानूनों में मनमानी गिरफ्तारी पर फैसले सुनाए।
- जस्टिस गवई उस पीठ के प्रमुख थे, जिसने नवंबर 2024 में यह माना था कि उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना लोगों की संपत्तियों पर बुलडोजर चलाना रूल ऑफ लॉ के खिलाफ है।
- जस्टिस गवई सात जजों के उस संविधान पीठ में भी शामिल थे, जिसने अनुसूचित जातियों के आरक्षण में आरक्षण देने की वकालत की थी।
- कांग्रेस नेता राहुल गांधी को आपराधिक मानहानी के एक मामले में सजा को स्थगित करने वाले बेंच में भी जस्टिस गवई शामिल थे।
महाराष्ट्र के दिग्गज नेता था जस्टिस गवई के पिता
- जस्टिस गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। वह अपने तीन भाइयों में सबसे बड़े हैं। उनके पिता रामकृष्ण सूर्यभान गवई महाराष्ट्र के दिग्गज नेताओं में से एक थे और वे 1964 से लेकर 1994 तक महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य रहे।
- उनके पिता विधान परिषद के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और विपक्ष के नेता के पद पर भी चुने गए थे। वे 1998 में अमरावती से 12वीं लोकसभा के लिए भी चुने गए थे। इसके साथ ही अप्रैल 2000 से लेकर अप्रैल 2006 तक जस्टिस गवई के पिता महाराष्ट्र से राज्य सभा के लिए भी चुने गए थे।
- मनमोहन सिंह की सरकार ने जून 2006 में उन्हें बिहार का राज्यपाल बनाया था। बिहार के अलावा वे सिक्किम और केरल के भी राज्यपाल रहे। अंबेडकरवादी राजनीति करने वाले रामकृष्ण सूर्यभान गवई ने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (गवई) की स्थापनी भी की थी।
घर के कामों में की मां की मदद
जस्टिस बीआर गवई को बचपन में लोग भूषण कहकर पुकारते थे और पिता के राजनीति में होने के कारण उन्हें राजनीतिक गतिविधियों के लिए अक्सर घर से बाहर रहना पड़ता था। ऐसे में उनका पालन-पोषण मां कमलाताई की देखरेख में ही हुआ।
अपने भाइयों में वे सबसे बड़े थे, जिस वजह से उन्हें जिम्मेदारी भी ज्यादा उठानी पड़ी। इतना ही नहीं, जस्टिस गवई बचपन में घर के कामकाज में अपनी मां की मदद भी किया करते थे। उनके अंदर समाज सेवा का हुनर बचपन से ही था।
जस्टिस गवई का बचपन अमरावती की एक झुग्गी बस्ती फ्रेजरपुरा में ही बीता और वहीं के नगरपालिका के स्कूल से उन्होंने पढ़ाई की। मराठी माध्यम के स्कूल में जमीन पर बैठकर उन्होंने कक्षा सात तक की पढ़ाई की। इसके आगे की पढ़ाई उन्होंने मुंबई, नागपुर और अमरावती में की।
जस्टिस गवई की यात्रा
- जस्टिस गवई ने बीकॉम के बाद कानून की पढ़ाई अमरावती विश्वविद्यालय से की।
- लॉ की डिग्री लेने के बाद 25 साल की उम्र में उन्होंने वकालत शुरू की।
- इस दौरान वो मुंबई और अमरावती की अदालतों में पेश होते रहे।
- इसके बाद उन्होंने बांबे हाई कोर्ट के नागपुर बेंच का रुख किया और वहां वह सरकारी वकील भी रहे।
- भूषण रामकृष्ण गवई को 2001 में जज बनाने का प्रस्ताव दिया गया था।
- उन्हें 2003 में बांबे हाई कोर्ट का एडिशनल जज और 2005 में स्थायी जज बनाया गया।
राहुल गांधी को जस्टिस गवई के फैसले से मिली थी राहत
जस्टिस गवई का करियर काफी लंबा रहा है और इस दौरान उन्होंने अपने परिवार की राजनीति पृष्ठभूमि को कभी नहीं छिपाया। ताजा मामला राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता खत्म करने वाले आपराधिक मानहानी मामले में सुनाई गई सजा से जुड़ा था।
जुलाई 2023 में राहुल गांधी के मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस गवई ने अपने परिवार का कांग्रेस से लगाव होने की वजह से मामले की सुनवाई से हटने का प्रस्ताव भी दिया था।
कैसे राहुल गांधी की सदस्यता हुई बहाल?
उन्होंने कहा था, “मेरे पिता कांग्रेस से जुड़े रहे हैं, हालांक वह पार्टी के सदस्य नहीं थे लेकिन उसके साथ जुड़े थे। मिस्टर सिंघवी (अभिषेक मनु सिंघवी) आप भी कांग्रेस से 40 सालों से जुड़े हैं और मेरा भाई अभी भी राजनीति में है और कांग्रेस से जुड़ा है। कृपया आपलोग बताएं कि क्या मुझे इस केस की सुनवाई करनी चाहिए?”
हालांकि, उनके यह कहने पर दोनों पक्षों ने उनके द्वारा सुनवाई करने को लेकर कोई आपत्ति नहीं जताई थी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को सुनाई गई सजा पर रोक लगा दी थी। इससे राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता बहाल हो गई थी।