फेफड़े के कैंसर का बड़ा कारण धूम्रपान है। यही वजह है कि उम्र बढ़ने पर लोग फेफड़े के कैंसर से अधिक पीड़ित होते हैं, लेकिन अब कम उम्र के लोगों में भी फेफड़े का कैंसर बढ़ रहा है।
अध्ययन में सामने आए चौंकाने वाले तथ्य
हैरान करने वाली बात यह है कि फेफड़े के कैंसर से ग्रस्त ज्यादातर युवा ऐसे हैं, जिन्हें धूम्रपान की लत नहीं होती। एम्स के आइआरसीएच (इंस्टीट्यूट रोटरी कैंसर हास्पिटल) की ओर से किए गए अध्ययन में यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है।
अध्ययन में पाया गया कि फेफड़े के कैंसर से पीड़ित 79 प्रतिशत मरीज धूम्रपान नहीं करते थे। डॉक्टर ऐसे मरीजों में बीमारी का कारण प्रदूषण बता रहे हैं।
2018 से 2023 के बीच किया गया अध्ययन
एम्स का यह अध्ययन हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल क्लीनिकल लंग कैंसर में प्रकाशित हुआ है। आइआरसीएच के डॉक्टरों ने जनवरी 2018 से दिसंबर 2023 के बीच अस्पताल में इलाज के लिए पहुंचे फेफड़े के कैंसर के मरीजों का डाटा एकत्रित कर यह अध्ययन किया है।
79% मरीजों ने कभी नहीं किया धूम्रपान
इसमें 21-44 वर्ष के 133 मरीज शामिल किए गए। इन मरीजों की औसत उम्र 36 वर्ष थी। इनमें 40.6 प्रतिशत महिलाएं भी शामिल थीं। अध्ययन में पाया गया कि 79 प्रतिशत मरीजों ने कभी धूम्रपान नहीं किया। 9.2 प्रतिशत मरीजों के परिवार में पहले से कैंसर की हिस्ट्री थी। इलाज के बाद मरीजों की औसत जीवन अवधि 26 माह रही। एडवांस स्टेज के मरीजों की जीवन अवधि साढ़े छह माह रही।
मरीजों पर किए अध्ययन की खास बातें-
- प्रदूषण युवाओं को दे रहा फेफड़े का कैंसर
- कम उम्र में फेफड़े के कैंसर से ग्रस्त हुए 79 प्रतिशत मरीज नहीं करते थे धूम्रपान
- एम्स के डॉक्टरों की ओर से किए गए अध्ययन में सामने आया चौंकाने वाला तथ्य
- फेफड़े के कैंसर से पीड़ित 21 से 40 वर्ष के 133 मरीजों पर किया गया अध्ययन
एम्स के कैंसर सेंटर के मेडिकल आंकोलाजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. प्रभात सिंह मलिक ने बताया कि फेफड़े के कैंसर से पीड़ित मरीजों में 70-80 प्रतिशत धूम्रपान करने वाले होते हैं। बीड़ी, सिगरेट के सेवन का असर धीरे-धीरे होता है।
भारत में मरीजों की संख्या अधिक
यही वजह है कि लंबे समय तक उसका सेवन करने के बाद उम्र बढ़ने के साथ फेफड़े के कैंसर के रूप में परिणाम सामने आता है। इससे फेफड़े के कैंसर से पीड़ित ज्यादातर मरीज अधिक उम्र के होते हैं, लेकिन अब धूम्रपान न करने वालों में भी यह बीमारी बढ़ रही है। दुनिया भर में फेफड़े के कैंसर से पीड़ित छह प्रतिशत मरीज युवा होते हैं। भारत में युवा आबादी अधिक होने से यहां फेफड़े के कैंसर युवा मरीजों की संख्या अधिक होती है।
उन्होंने कहा कि धूम्रपान नहीं करने वाले मरीजों में फेफड़े के कैंसर के कारण इस अध्ययन से स्पष्ट नहीं है। इस अध्ययन का मकसद क्लीनिकल था, इसलिए स्टडी में उस पर अधिक ध्यान केंद्रित किया गया। फिर भी वायु प्रदूषण व खराब जीवनशैली इसके कारण हो सकता है। अध्ययन में शामिल 85.7 प्रतिशत मरीजों में एडिनोकार्सिनोमा पाया गया। यह कैंसर धूमपान न करने वालों को होता है।
समस्या यह है कि इससे पीड़ित ज्यादातर मरीज एडवांस स्टेज में पहुंचते हैं। बहुत मरीजों में जेनेटिक म्यूटेशन पाया गया, इसलिए ऐसे मरीजों के इलाज में टारगेट थेरेपी की भूमिका अधिक हो सकती है। अध्ययन में शामिल मरीज किसी खास क्षेत्र विशेष के नहीं थे। कैंसर सेंटर में विभिन्न राज्यों से मरीज पहुंचते हैं।
वैसे एम्स के कैंसर सेंटर में दिल्ली एनसीआर के अलावा उत्तर प्रदेश व बिहार के मरीज अधिक पहुंचते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के डाटा के अनुसार, घर के अंदर प्रदूषण को कारण दुनिया भर में करीब 32 लाख लोगों की असमय मौत होती हैं। फेफड़े के कारण के कारण जान गंवाने वाले 11 प्रतिशत वयस्कों की मौत का कारण घर के अंदर का प्रदूषण होता है। वहीं, फेफड़े के कैंसर के चार प्रतिशत मरीजों का कारण वायु प्रदूषण होता है।