अंजन कुमार कुमार ने बताया कि मूलरूप से झारखंड के गढ़वा की रहने वाली इस बच्ची क पेट में लगातार दर्द रहता था। जांच में पैंक्रियाज में ट्यूमर होने का पता चला, जिसे स्यूडोपैपिलरी एपिथेलियल नियोप्लाज्म (एसपीईएन) कहा जाता है।

किस उम्र के बच्चों को होती है ये बीमारी?

यह बीमारी ज्यादातर लड़कियों को दस से 30 वर्ष की उम्र में होती है। इसके इलाज के लिए लिए जटिल व्हिपल सर्जरी की आवश्यकता होती है। इसके लिए बड़ा पेट में बड़ा चीरा लगाकर सर्जरी की जाती है। पैंक्रियाज बहुत छोटा अंग होता जो कई जो कई रक्त वाहिकाओं से घिरा होता है। इस वजह से सर्जरी जटिल होती है। लैप्रोस्कोपिक सर्जरी में रक्त वाहिकाओं को बचाना चुनौती थी।

उन्होंने बताया कि ओपन सर्जरी से मरीज को परेशानी अधिक होती है।‌ कई महत्वपूर्ण कारकों पर विचार करते हुए लैप्रोस्कोपिक सर्जरी करने का फैसला लिया गया। इसके लिए मरीज के पेट में चार छोटे छेद किए गए। दो केवल पांच मिलीमीटर के और दो छेद 10 मिलीमीटर के किए गए।

क्या बोले एनेस्थीसिया के डॉक्टर?

इससे सर्जरी में मरीज को सिर्फ 80 मिलीलीटर ब्लड का नुकसान हुआ। लैप्रोस्कोपिक सर्जरी के कारण बच्ची जल्दी ठीक हो गई। बीमारी के कारण वह स्कूल नहीं जा पा रही थी। उसे स्कूल जाने का बेसब्री से इंतजार था। अब वह स्कूल जा सकेगी।

उन्होंने बताया कि स्यूडोपैपिलरी एपिथेलियल नियोप्लाज्म कैंसर ज्यादातर ठीक हो जाता है। उसे नियमित फालोअप के जरिए निगरानी की जाएगी। एनेस्थीसिया के प्रोफेसर डॉ. विकास रंजन रे ने बताया कि टीम लंबे समय तक चलने वाली इस सर्जरी के लिए पूरी तरह तैयार थी। सर्जरी बिना किसी एनेस्थेटिक जटिलताओं के पूरी हुई। बेहतरीन दर्द प्रबंधन से सुनिश्चित किया गया। जिससे बच्ची को सर्जरी के बाददर्द रहित रिकवरी का अनुभव हुआ।
पीडियाट्रिक विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. संदीप अग्रवाल ने कहा कि यह उपलब्धि पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग की असाधारण क्षमताओं को उजागर करती है, जिसे लिवर, पित्ताशय और पैंक्रियाज की जटिल बीमारियों की सर्जरी के अनुभव पर आधारित है।