टीकमगढ़ जिले में मनरेगा के तहत मजदूरों को महज 67 पैसे प्रतिदिन की मजदूरी दी गई, जिससे मजदूरों और सरपंच संघ ने विरोध जताया। अधिकारियों पर कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। प्रशासन ने जांच शुरू की है, लेकिन मजदूरों को उचित मजदूरी और न्याय की मांग है।
जिले में मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) के तहत मजदूरों को महज 67 पैसे प्रतिदिन की मजदूरी दी जा रही है। यह चौंकाने वाली जानकारी मनरेगा पोर्टल पर दर्ज भुगतान विवरण से सामने आई। इस भुगतान को लेकर मजदूरों ने विरोध जताया, जबकि सरपंच संघ ने इसे अधिकारियों की लापरवाही और कमीशनखोरी का नतीजा बताया।
टीकमगढ़ जिले की ग्राम पंचायत भेरा में पत्थर गाड़ी का काम कराया गया, जिसमें 10 मजदूर सात दिनों तक काम पर लगे। लेकिन जब भुगतान हुआ, तो प्रत्येक मजदूर को कुल 4.59 रुपये (67 पैसे प्रतिदिन) मिले। मजदूर रामकुमार ने कहा कि जहां शहरों में 500 रुपये प्रतिदिन मजदूरी मिलती है, वहां मनरेगा में 67 पैसे मिलना अपमानजनक है। मजदूरों ने जिला प्रशासन से इस अन्यायपूर्ण भुगतान की जांच की मांग की है।
सरपंच संघ ने अधिकारियों पर लगाया कमीशनखोरी का आरोप
अखिल भारतीय पंचायत परिषद के राष्ट्रीय सचिव महेंद्र सिंह ने कलेक्टर को इस मामले से अवगत कराया। उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकारियों को कमीशन नहीं मिलने पर पंचायतों को परेशान किया जाता है। मास्टर रोल जीरो कर दिया जाता है, जिससे मजदूरों को मजदूरी नहीं मिलती और 100 कार्य दिवस पूरे नहीं हो पाते। इसके कारण कई जरूरी काम भी स्वीकृत नहीं किए जाते।
मनरेगा में भ्रष्टाचार, उपयंत्रियों की भूमिका संदिग्ध
मनरेगा कार्यों का वैल्यूएशन उपयंत्री (सब-इंजीनियर) करते हैं, लेकिन टीकमगढ़ जिले में पदस्थ कई उपयंत्री भ्रष्टाचार में लिप्त रहे हैं। तत्कालीन कलेक्टर सुभाष कुमार द्विवेदी ने पांच उपयंत्रियों की सेवाएं समाप्त की थीं, लेकिन वे अब भी कार्यरत हैं। जब इस मामले पर जनपद पंचायत टीकमगढ़ के कार्यपालन यंत्री आशीष अग्रवाल से बात की गई, तो उन्होंने कहा कि शिकायत उनके पास आई है और मामले की जांच की जा रही है।
मजदूरों को न्याय की मांग
मजदूरों और सरपंच संघ ने मनरेगा में पारदर्शिता और उचित मजदूरी भुगतान की मांग की है। अब देखना होगा कि प्रशासन इस गंभीर अनियमितता पर क्या कार्रवाई करता है।