संते सिर्फ छह महीने के थे जब डॉक्टर के दो गलत इंजेक्शन की वजह से उनका दाहिना हाथ लकवाग्रस्त हो गया था। उन्‍होंने कहा, “मैंने केवी पेंढारकर कॉलेज की तरफ से लेदर-बॉल क्रिकेट खेलना शुरू किया। डोंबिवली में पले-बढ़े होने की वजह से हमारे पास आज के बच्चों जैसी सुविधाएं नहीं थीं। एक कॉलेज मैच के दौरान मैंने फिफ्टी ठोकी और विरोधी टीम के अंपायर बहुत प्रभावित हुए और यहीं से मेरा सफर शुरू हुआ।”

संते ने कहा, “उस समय मुझे यह भी नहीं पता था कि दिव्यांग क्रिकेट भी होता है। एक दिन एक स्थानीय पार्षद ने दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए एक प्रदर्शनी मैच आयोजित किया। यहीं मेरी मुलाकात रवि पाटिल सर से हुई। उसके बाद दो-तीन साल तक मैं विरार में उनके साईनाथ क्रिकेट क्लब में ट्रेनिंग के लिए रोजाना जाता था। जल्द ही मैं महाराष्ट्र और फिर भारत के लिए चुन लिया गया।”