प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 124वें एपिसोड में देशवासियों को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने भारत की समृद्ध ज्ञान परंपरा और जैव विविधता को संरक्षित करने के दो महत्वपूर्ण प्रयासों पर प्रकाश डाला, जिनमें टेक्नोलॉजी और संवेदनशीलता का अनूठा संगम देखने को मिला।
‘ज्ञान भारतम् मिशन’ की घोषणा
प्रधानमंत्री मोदी ने ‘ज्ञान भारतम् मिशन’ की घोषणा को एक ऐतिहासिक पहल बताया। उन्होंने कहा कि यह मिशन आने वाली पीढ़ियों को भारत की आत्मा से जोड़ने का माध्यम बनेगा। पीएम ने कहा कि भारत की समृद्ध ज्ञान परंपरा और जैव विविधता को बचाने के लिए पूरे देश में प्रयास किए जाएंगे। इससे हमारा प्राचीन ज्ञान केवल किताबों या दीवारों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि नई पीढ़ी की सोच का हिस्सा बनेगा।
इसी विचार से प्रेरित होकर सरकार ने इस साल के बजट में ‘ज्ञान भारतम् मिशन’ शुरू किया है। इस मिशन के अंतर्गत देशभर में बिखरी प्राचीन पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण किया जाएगा। इसके बाद एक राष्ट्रीय डिजिटल रिपॉजिटरी तैयार की जाएगी, जहाँ भारत ही नहीं, दुनिया भर के छात्र और शोधकर्ता भारतीय ज्ञान परंपरा से जुड़ सकेंगे। उन्होंने लोगों से इस पहल में सक्रिय भागीदारी करने की अपील की और कहा कि अगर आप किसी ऐसे प्रयास से जुड़े हैं या जुड़ना चाहते हैं, तो MyGov या संस्कृति मंत्रालय से संपर्क करें, क्योंकि ये सिर्फ पांडुलिपियां नहीं हैं, ये भारत की आत्मा के वे अध्याय हैं जिन्हें हमें आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाना है।
काजीरंगा में AI से पक्षियों की पहचान
पीएम मोदी ने असम के प्रसिद्ध काजीरंगा नेशनल पार्क का उल्लेख करते हुए एक अनूठे प्रयास की सराहना की। उन्होंने बताया कि काजीरंगा, जो आमतौर पर अपने एक सींग वाले गैंडों के लिए प्रसिद्ध है, वहाँ पहली बार ‘ग्रासलैंड बर्ड सेंसस’ यानी घासभूमि पक्षी गणना की गई है।
उन्होंने कहा कि आपको यह जानकर खुशी होगी कि इस गणना में 40 से अधिक पक्षी प्रजातियों की पहचान की गई, जिनमें कई दुर्लभ पक्षी भी शामिल हैं। यह सब तकनीक की मदद से संभव हुआ। टीम ने साउंड रिकॉर्डिंग डिवाइस लगाए और फिर उन ध्वनियों को AI तकनीक के ज़रिए कंप्यूटर पर एनालाइज किया गया। इस प्रक्रिया में पक्षियों को बिना परेशान किए, केवल उनकी आवाज से ही पहचान लिया गया। पीएम मोदी ने जोर देकर कहा कि यह उदाहरण दिखाता है कि जब टेक्नोलॉजी और संवेदनशीलता मिलती है, तो प्रकृति को समझना और भी आसान हो जाता है। उन्होंने ऐसे प्रयासों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता पर जोर दिया ताकि भारत की जैव विविधता की पहचान बनी रहे और आने वाली पीढ़ियों को इससे जोड़ा जा सके।