राष्ट्रपति नवनियुक्त जज के ‘नियुक्ति के वारंट’ पर हस्ताक्षर करती हैं। तदर्थ जजों की नियुक्ति प्रक्रिया भी वही रहेगी, सिवाय इसके कि राष्ट्रपति नियुक्ति पत्र पर हस्ताक्षर नहीं करेंगी। लेकिन तदर्थ जजों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति की सहमति ली जाएगी।

कोर्ट ने क्या शर्तें लगाई थीं?

अधिकारियों ने पहले बताया था कि एक मामले को छोड़कर सेवानिवृत्त जजों को हाई कोर्ट के तदर्थ जजों के रूप में नियुक्त करने का कोई उदाहरण नहीं है। हाई कोर्टों में तदर्थ जजों की नियुक्ति पर 20 अप्रैल, 2021 को दिए गए फैसले में शीर्ष अदालत ने कुछ शर्तें लगाई थीं।

हालांकि, बाद में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई (वर्तमान प्रधान न्यायाधीश) और जस्टिस सूर्यकांत की सुप्रीम कोर्ट की विशेष पीठ ने कुछ शर्तों में ढील दी और कुछ को स्थगित कर दिया था।
पूर्व प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे द्वारा लिखे गए फैसले में लंबित मामलों को निपटाने के लिए हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जजों को दो से तीन वर्ष की अवधि के लिए तदर्थ जज के तौर पर नियुक्त करने का निर्देश दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

एक शर्त में कहा गया था कि यदि हाई कोर्ट अपने स्वीकृत पदों के 80 प्रतिशत के साथ काम कर रहा है, तो तदर्थ जजों की नियुक्ति नहीं की जा सकती, जबकि दूसरी शर्त में कहा गया था कि तदर्थ जज मामलों से निपटने के लिए अलग-अलग पीठों में बैठ सकते हैं।

पीठ ने यह भी कहा कि प्रत्येक हाई कोर्ट को दो से पांच तदर्थ जजों की नियुक्ति करनी चाहिए और यह संख्या कुल स्वीकृत पदों के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए।