ऐसे में सवाल यह उठता है कि बिना वैध अनुबंध के एजेंसी को यह आदेश कैसे और किस आधार पर दिया गया? क्या अनुबंध का नवीनीकरण हुआ है या आदेश नियमों की अनदेखी करते हुए जारी किया गया?
पूर्व अस्पताल अधीक्षक डा. उदय नारायण सिंह ने बातचीत में स्पष्ट किया कि उनके कार्यकाल में इस एजेंसी से कोई एसी नहीं खरीदी गई।
उन्होंने बताया कि एआरटीसी सेंटर के लिए एक एसी की खरीद विभागीय फंड से की गई थी और वह भी क्रय समिति के माध्यम से हुई थी।
उन्होंने कहा कि मार्च माह में जब वे प्राचार्य बने, उस समय तक किसी एसी की आवश्यकता सामने नहीं आई थी।
जब इस खरीद के संबंध में पूर्व अधीक्षक डा. हेमशंकर शर्मा से प्रतिक्रिया लेने का प्रयास किया गया, तो उन्होंने मीटिंग में होने की बात कहकर टाल दिया। वहीं वर्तमान अधीक्षक डा. अविलेश कुमार से कई बार संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने काल रिसीव नहीं किया।
एसी की संख्या को लेकर भी भ्रम की स्थिति बनी हुई है। पत्र में जहां 25 एसी की आपूर्ति का आदेश दर्ज है, वहीं अस्पताल सूत्रों के अनुसार संख्या 35 तक पहुंच चुकी है। इस अंतर को लेकर कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है।

पहले भी लग चुके हैं इस तरह के आरोप

उल्लेखनीय है कि इससे पहले भी मेडिकल कॉलेज प्रशासन पर नर्सों के वेतन को लेकर नियमविरुद्ध निकासी का आरोप लग चुका है।

उस मामले में भी संबंधित फाइलें लंबे समय तक विभाग में लंबित रहीं और अब तक कोई ठोस निष्कर्ष सामने नहीं आया है।
अब जबकि एसी की खरीद को लेकर नए सवाल खड़े हो गए हैं, अस्पताल प्रशासन की पारदर्शिता और वित्तीय अनुशासन पर गंभीर संदेह जताया जा रहा है।
अनुबंध समाप्त होने के बाद आपूर्ति आदेश, अधिकारी का चुप्पी साध लेना और दस्तावेजों का अस्पष्ट रहना। ये सभी पहलू मामले को और उलझा रहे हैं।
फिलहाल यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि एजेंसी को भुगतान की प्रक्रिया शुरू हुई है या नहीं। साथ ही, यह भी सामने नहीं आया है कि क्या इस खरीद को विभागीय स्वीकृति प्राप्त है।
न ही इस बात की पुष्टि हो सकी है कि क्रय समिति की बैठक इस खरीद से पहले बुलाई गई थी या नहीं। पूरे मामले में अस्पताल प्रशासन की ओर से अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं है।