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नई दिल्ली
बढ़ती गर्मी और लू अब मानवाधिकार का मुददा भी बन गया है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के अध्यक्ष भरत लाल ने मंगलवार को कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव – खासतौर पर लू को अनुच्छेद 21 : जीवन के अधिकार के तहत मानवाधिकार मुद्दों के रूप में देखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि बीते 30 वर्षों में अत्यधिक गर्मी के कारण 24 हजार से अधिक मौतें हुईं जबकि हाल के वर्षों में स्थिति और भी खराब हुई है।
लाल ने यह भी बताया कि पिछले महीने, एनएचआरसी ने 11 राज्यों को पत्र जारी कर कमज़ोर लोगों, विशेष रूप से बेघर या बुज़ुर्ग व्यक्तियों या बाहरी कामगारों की सुरक्षा के लिए सक्रिय कदम उठाने के लिए कहा है। उन्होंने वर्तमान में गर्मी के असर को कम करने की चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला।
गर्मी से होने वाली मौतों पर कोई विश्वसनीय डेटा नहीं
गैर सरकारी संगठन क्लाइमेट ट्रेंड्स द्वारा आयोजित इंडिया हीट समिट 2025 में मंगलवार को विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि भारत में हीटस्ट्रोक और गर्मी से होने वाली मौतों पर कोई विश्वसनीय डेटा नहीं है। वजह, डेटा रिपोर्टिंग सिस्टम पूरे देश में समान रूप से मजबूत नहीं है।
अत्यधिक गर्मी के प्रभाव के बारे में स्वास्थ्य मंत्रालय की सलाहकार सौम्या स्वामीनाथन ने कहा कि मौतें तो महज एक पहलू हैं। “हम जलवायु संबंधी खतरों या गर्मी के कारण होने वाली सभी मौतों की पूरी तरह से गणना नहीं करते हैं, क्योंकि रिपोर्टिंग सिस्टम पूरे देश में समान रूप से मजबूत नहीं हैं।”
मृत्यु रिपोर्टिंग सिस्टम को मजबूत करने की जरूरत
स्वामीनाथन ने कहा कि मृत्यु रिपोर्टिंग सिस्टम को मजबूत करने की आवश्यकता है। सरकार और नीति निर्माताओं के लिए यह जानने का सबसे अच्छा स्रोत है कि लोग किस कारण से मरते हैं। सरकारी नीतियों में भी इस बात का उल्लेख होना चाहिए।” उन्होंने एक पर्यावरणीय स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना का भी आह्वान किया, जहां स्वास्थ्य, पर्यावरण और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय एक साथ मिलकर डेटा साझा कर सकें और सूचना को कार्रवाई में परिवर्तित कर सकें।
पर्यावरणविद चांदनी सिंह ने कहा कि गर्मी से होने वाली मौतों को कैसे दर्ज किया जाता है, इसमें चुनौतियां हैं और संदर्भ के लिए कोई अच्छा डेटासेट नहीं है। उन्होंने चिंता जताई कि वर्तमान में, हीटस्ट्रोक और गर्मी से संबंधित मौतों पर राष्ट्रीय स्तर पर कोई प्रतिनिधि डेटा नहीं है।”
स्वामीनाथन ने यह भी कहा कि जबकि गर्मी से निपटने की हीट एक्शन प्लान की संख्या बढ़ रही है, इन्हें अक्सर विशेषज्ञों के समूह द्वारा साथ बैठकर तैयार किया जाता है। इसमें बहुत कम सामुदायिक परामर्श, जमीनी सच्चाई या प्रतिक्रिया संग्रह होता है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्य कृष्ण वत्स ने कहा कि देश में “एक अच्छी तरह से स्थापित शैक्षणिक या तकनीकी केंद्र… ऐसे लोगों का समूह नहीं है जो जिलों और शहरों को गर्मी से निपटने के लिए कार्ययोजना तैयार करने में मदद कर सकें”।
उन्होंने कहा, “हमारे पास सभी ज्ञान और विशेषज्ञता का प्रसार करने के लिए एक निर्दिष्ट, उचित उत्कृष्टता केंद्र भी नहीं है।” उन्होंने कहा कि यदि हीट एक्शन प्लान का कार्य केवल अधिकारियों पर छोड़ दिया जाए तो यह बहुत सफल नहीं होगा। इसमें अधिक सहायता और तकनीकी प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी।
इस दौरान शुष्क लू और उमस भरी लू के लिए भी अलग अलग प्लान बनाने की मांग उठी। मौसम विभाग के महा -निदेशक डा मृत्युंजय महापात्रा ने बताया कि आम जन की जरूरत के हिसाब से समय- समय पर पूर्वानुमान को लेकर बदलाव किया जाता रहता है।