इतिहास को बताया गया अपमानित करने वाला प्रश्न
कई सामाजिक संगठनों और इतिहासविदों ने भी प्रश्न पर आपत्ति दर्ज कराई है। इसके बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने मामले की जांच कराने के साथ पेपर बनाने वाले से लेकर विषय के अध्ययन मंडल और परीक्षा विभाग तक से जवाब मांगने की बात कही है। इतिहासविदों का कहना है कि वीरता और बलिदान की प्रतीक रानी दुर्गावती को मकबरे से जोड़ना गौरवशाली सांस्कृतिक विरासत और उनके बलिदान का अपमान है।
परीक्षा नियंत्रक ने माना प्रश्न गलत
वहीं, कुछ सामाजिक संगठनों का कहना है कि इसके पीछे किसी की खुराफात या साजिश हो सकती है। परीक्षा नियंत्रक डा. रश्मि मिश्रा ने कहा कि यह प्रश्न गलत है। मकबरा शब्द का उपयोग नहीं होना चाहिए। अब देखा जाएगा कि पेपर किसने बनाया और किसने की जांच की है। इस मामले में संबंधित को नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण लेंगे। जिम्मेदार पर कार्रवाई की जाएगी। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार 1550 से 1564 तक गढ़ा की शासक रही रानी दुर्गावती को मुगल साम्राज्य के खिलाफ राज्य की रक्षा के लिए याद किया जाता है।
बलिदान की धरती पर बना है स्मारक, नहीं है कोई मकबरा
उन्होंने मुगल बादशाह अकबर के जुल्म के आगे झुकने से इन्कार कर दिया और 24 जून 1564 को मुगलों से लड़ते हुए खुद ही तलवार सीने में घुसा ली और बलिदान हो गईं। जबलपुर में बरेला के निकट जबलपुर-मंडला मार्ग पर उनका स्मारक (समाधि) नरिया नाला में ठीक उसी स्थान पर बनाया गया है, जहां वह बलिदान हुई थीं। 1983 में जबलपुर विश्वविद्यालय का नाम बदलकर रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय कर दिया गया था।