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दिल्ली
‘जाको राखे साइयां मार सके ना कोय’ यह कहावत मुस्तफाबाद में हुए हादसे में सही साबित हुई। आठ घंटे तक मकान मालिक की बुजुर्ग पत्नी जीनत मलबे में दबी रही और जीवित बाहर निकली। लोगों ने उनके जीवित रहने की उम्मीद छोड़ दी थी। उन्होंने मौत को मात दे नया जीवन पाया।
जब बुजुर्ग को एनडीआरएफ की टीम ने मलबे से जीवित बाहर निकाला तो वहां पर मौजूद लोगों की आंखों से आंसू छलक गए। टीम के लिए लोगों ने तालियां बजाई।
हादसे के वक्त बुजुर्ग महिला पहली मंजिल पर अकेले अपने कमरे सो रही थी। दोपहर 12 बजे बुजुर्ग मलबे में दबी हुई मिलीं। टीम को उनका चेहरा नजर आया। एनडीआरएफ ने उन्हें पहले आक्सीजन लगाया। उसके बाद उन्हें मलबे से निकाला और एंबुलेंस से जीटीबी अस्पताल भेजा। अस्पताल में महिला की स्थिति ठीक बताई जा रही है।
पहले बच्चे और फिर निकले माता पिता के शव
मकान में प्रत्येक मंजिल पर तीन कमरे बने हुए थे। नाजिम पहली मंजिल पर बालकनी वाले कमरे में अपनी पत्नी व तीन बच्चों के साथ रहते थे। मकान का अधिकतर मलबा गली में गिरा था। दोपहर के 12:30 बज रहे थे। सूरज आग बरसा रहा था। पूरा लैंटर गली में पड़ा हुआ था।
लैंटर को बड़ी ड्रिल मशीन से दो हिस्सो में तोड़ा गया
एनडीआरएफ की टीम बार-बार उस लैंटर को किसी तरह से हटाने की कोशिश कर रही थी। वजन इतना था कि लैंटर हट नहीं रहा था। हाइड्रा मशीन मंगवाई गई। लैंटर को बड़ी ड्रिल मशीन से दो हिस्सो में तोड़ा गया। इसके बाद हाइड्रा मशीन से लैंटर को हटाया गया। एक ही जगह पर नाजिम का पूरा परिवार दबा हुआ मिला।
पहले बचाव दल ने नाजिम की बेटी आफरीन (4), उसके बाद छोटे बेटे अनस और बाद में बड़े बेटे अफ्फान को ढूंढकर निकाला। उसी दौरान टीम की नजर मलबे में दबे पैर पर पड़ी। पैर में पायल थी, जिससे यह साफ हो गया कोई महिला है। मलबा हटाया गया तो वह नाजिम की पत्नी शाहिना था। आखिर में नाजिम को निकाला गया।