Sunday, July 27, 2025
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संस्कारों का श्रीगणेश: नवसंवत्सर पर बच्चों को कराएं अपनी परंपराओं से रूबरू

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नई दिल्ली
द केरल स्टोरी’ में एक संवाद है, ‘पापा, गलती तो आपकी ही है कि आपने हमें बहुत कुछ बताया परंतु धर्म क्या है, इस बारे में कभी कुछ नहीं बताया।’ संवाद फिल्मी जरूर है, मगर इसके पीछे छिपी गहराई कम नहीं। यह आज की सच्चाई है कि हम विदेशी परंपराओं और जानकारियों के बारे में तो बड़े शौक से बच्चों को बताते-सिखाते हैं, मगर बात जब अपने धर्म की आती है तो उसमें पीछे रह जाते हैं। अपनी परंपराओं के बारे में नई पीढ़ी को बताने का सही समय है आज से आरंभ हो रहा नवसंवत्सर। यह हिंदू नववर्ष की शुरुआत है, तो क्यों न आज से अपने बच्चों को भी अपनी संस्कृति के बारे में बताएं!

प्रकृति के प्रति कृतज्ञता

होली से लेकर दीपावली और यहां तक कि नवरात्र में भी प्रकृति के प्रति कृतज्ञता अर्पित की जाती है। बच्चों को अपनी संस्कृति में शामिल प्रकृति के बारे में बताएं। सूर्योदय से पूर्व उठने की सनातन परंपरा को बच्चों में भी रोपित करें। सनातन धर्म में तो धरती माता पर सुबह पहला कदम रखने के लिए भी क्षमा मांगी जाती है- ‘विष्णु-पत्नि नमस्तुभ्यं, पाद-स्पर्शं क्षमस्व मे’। उन्हें कृतज्ञ भाव से धरती का सम्मान करने के बारे में बताएं। इसके लिए उन्हें सूर्य, धरती और पेड़-पौधों का हमारे जीवन में योगदान होने की बातें बताएं। आज बच्चे आपकी बात तभी मानते हैं जब उसका लाजिक समझते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि आप उन्हें पूरी बात बताएं, क्योंकि अगर आपका लाजिक उनके सोच से मिल गया तो आपके संस्कारों को वे जीवन में सहजता से उतार लेते हैं।

जीवों की भी है यह धरती

आज मनुष्य स्वयं को सर्वशक्तिमान मानते हुए अन्य प्राणियों का निरादर करने लगे हैं। मूक जीव इसका सबसे आसान शिकार हो जाते हैं। बच्चों को समझाएं कि यह धरती सिर्फ इंसानों के लिए नहीं है, ईश्वर ने जीवों को भी इस धरती का अहम अंग यूं ही नहीं बनाया है। सिर्फ आपके पालतू ही महत्वपूर्ण नहीं, फूलों पर मंडराती तितली, भंवरे से लेकर बड़े-बड़े हाथी, समुद्री जीव आदि भी उतने ही आवश्यक हैं। मनुष्य जीवों को नुकसान न पहुंचाए, यही वजह रही कि हमारी परंपराओं में जीवों को देवताओं के वाहन और अवतार के रूप में बताया गया। जीवों की खाल से बनने वाले परिधान व सौंदर्य प्रसाधनों की बढ़ती ललक को कम करने का यही तरीका है कि आप उन्हें समझाएं कि ये जीव पृथ्वी पर खाद्य श्रंखला नियंत्रित करने के साथ ही प्रकृति को आवरण देते हैं, पोषण और परागण में भूमिका निभाते हैं।

शक्तिकी उपासना

हमारी पौराणिक कथाओं में ऐसा कोई देवता नहीं जो शक्ति (क्षमता) के साथ न आता हो। इसलिए बच्चों को इस बात का भान कराएं कि कि हम सब किसी न किसी क्षमता के साथ पैदा हुए हैं। बेहतर होगा कि वे अपने शरीर को बलशाली बनाएं, मन को नियंत्रित करना सीखें और साथ ही अपनी भावनात्मक क्षमता को भी मजबूत करें। उन्हें बताएं कि ‘क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो’ अर्थात्, क्षमा उस व्यक्ति को शोभा देती है जिसके पास शक्ति और दंड देने की क्षमता हो, न कि किसी कमजोर व्यक्ति को।

परिवार के मूल्य

हमारी संस्कृति का सबसे पहला पाठ है कि हम अपने परिवार के मूल्यों को समझें। यह धर्म भी है और सकारात्मक जीवनशैली भी । भगवान श्रीराम के बाल्यकाल का जिक्र करते हुए भी यह समझाया गया है कि किस प्रकार सबसे पहले वे अपने परिवार के बड़े-बुजुर्गों का सम्मान करते थे- ‘प्रातकाल उठि कै रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा’। इस प्रकार की तमाम बातों को समझाने के लिए आप बच्चों की कहानियों व किताबों की मदद ले सकते हैं। गीताप्रेस-गोरखपुर सहित कई प्रकाशक हैं, जो हमारी संस्कृति को नवकोपलों तक प्रेषित करने के लिए संलग्न हैं। सूत्रधार जैसे कई एप हैं जो स्मार्टफोन की स्क्रीन से चिपके बच्चों के लिए संस्कार की पाठशाला बन सकते हैं। खास बात तो यह है कि यहां भाषा की भी बाध्यता नहीं है। हमारे संस्कार इतने शक्तिशाली हैं कि भाषा कोई भी हो, बच्चे जब अपने संस्कारों के बारे में जागरूक हो जाते हैं तो वे खुद ही सर्वशक्तिमान बन सकते हैं!

अपनी संस्कृति का ज्ञान

एफिल टावर देखने की इच्छा है, उसके बारे में पूरी जानकारी है मगर रणथंबौर के बारे में भी परिचित हों। जब बच्चों को अपने देश के पूर्वजों, वीरों, क्रांतिकारियों के बारे में बताएं। बच्चे के दिमाग में विदेश में पढ़ने या नौकरी का विचार रोपने के साथ ही उनकी नींव अपनी संस्कृति से मजबूत करें। आप उन्हें विदेश के ज्ञानियों-विज्ञानियों के बारे में बता रहे हैं तो महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी महाराज, महारानी लक्ष्मीबाई और भगत सिंह के बारे में भी अवश्य बताएं। ताकि अगर बच्चा विदेशी धरती पर रहे तो भी उसे अपने देश पर गर्व हो। इसके साथ ही जरूरी है कि आप इन बातों को स्वयं पर भी लागू करें। कथनी-करनी में अंतर न रखें। आपको भी अपनी संस्कृति की समझ, ज्ञान और गर्व होना चाहिए, तभी आप इसे सही तरीके से बच्चों को समझाने में सक्षम होंगे।

 

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