होला-मोहल्ला का इतिहास (Hola Mohalla History)
तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब प्रबंधक समिति के अध्यक्ष सरदार जगजोत सिंह सोही ने बताया कि वर्ष 1701 को आनंदपुर साहेब में दशमेश गुरु गोविंद सिंह ने आदेश दिया था कि अब से सिख होली नहीं होला मनाएंगे। दशमेश गुरु ने रंग-अबीर की जगह इसे वीर सैनिकों का त्योहार बना दिया।
कंगन घाट व बाललीला गुरुद्वारा में कीर्तन से संगत हुई निहाल
पंच-प्यारे की अगुवाई और बैंड-बाजे के साथ तलवार, भाला व ढाल लिए सिख संगत श्री गोविंद सिंह घाट गई। उसके बाद झाऊगंज गली मार्ग होते अशोक राजपथ से चौक होते मंगल तालाब भ्रमण करते नगर-कीर्तन बाल लीला गुरुद्वारा मैनी संगत पहुंची। बाललीला गुरुद्वारा में कीर्तन से संगत निहाल हुई।
कथावाचक ने होला-मोहल्ला की महत्ता पर प्रकाश डाला। बाल-लीला गुरुद्वारा में विशेष लंगर में संगत ने पंगत में बैठ प्रसाद छके। बाद में नगर-कीर्तन दोपहर दो बजे तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब पहुंचेगा। नगर कीर्तन में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम थे।