Friday, June 20, 2025
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‘एक थाली और एक थैला’ अभियान ने दिखा दी देश को नई दिशा

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‘एक थाली और एक थैला’ अभियान में साधु-संतों और संस्थाओं का योगदान सराहनीय रहा है। उन्होंने इस अभियान को न केवल हाथों-हाथ लिया, बल्कि ऐसी व्यवस्था की कि भक्त स्वयं थालियां को साफ करें और सुरक्षित रखकर जाएं।  इस अभियान से 29,000 टन अपशिष्ट की कमी आई है और 140 करोड़ रुपए से अधिक की बचत हुई है।

प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में एक ऐसा अनूठा अभियान चलाया जा रहा है, जो देश में प्लास्टिक के इस्तेमाल को लेकर दिशा और दशा, दोनों को बदल सकता है। दरअसल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने महाकुंभ से पहले देशभर से ‘एक थाली और एक थैला’ इकट्ठा करने का बड़ा अभियान छेड़ा था, ताकि प्लास्टिक की थाली और थैलियों के प्रयोग से बचा जा सके।

देश से जुटाई गईं स्टील की थालियों और कपड़े के थैलों की महाकुंभ में अखाड़ों, संस्थाओं और सरकारी विभागों को आपूर्ति की गई। इस अभियान के क्रांतिकारी परिणाम सामने आए हैं, जो न केवल आर्थिक, बल्कि पर्यावरण के दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण हैं।

महाकुंभ आयोजन से जुड़े सरकारी अधिकारियों ने भी प्लास्टिक मुक्त महाकुंभ को लेकर प्रयास शुरू किए। इसमें साधु-संतों को अपने साथ जोड़ा गया। अखाड़ों ने यह प्रण लिया कि इस बार प्लास्टिक का उपयोग नहीं करेंगे। हालांकि, असली समस्या यह आ रही थी कि यदि प्लास्टिक नहीं तो फिर क्या?

इसका रास्ता दोना-पत्तल और कुल्हड़ से निकला, लेकिन करोड़ों की संख्या में इनकी आपूर्ति आसान नहीं होती। फिर इनके निस्तारण की व्यवस्था भी करनी पड़ती। इसके बाद स्टील की थाली और कपड़े के थैले का आइडिया सामने आया। स्टील की थाली को धोकर दोबारा इस्तेमाल में लिया जा सकता है।

आंकड़ों पर जाएं तो महाकुंभ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने 14 लाख से अधिक स्टील की थालियां वितरित की हैं। 13 लाख से अधिक कपड़े के थैले बांटें हैं। पौन तीन लाख से अधिक स्टील के गिलास बांटे गए हैं। इस अभियान से 29,000 टन अपशिष्ट की कमी आई है और 140 करोड़ रुपए से अधिक की बचत हुई है।

‘एक थाली और एक थैला’ अभियान

‘एक थाली और एक थैला’ अभियान में साधु-संतों और संस्थाओं का योगदान सराहनीय रहा है। उन्होंने इस अभियान को न केवल हाथों-हाथ लिया, बल्कि ऐसी व्यवस्था की कि भक्त स्वयं थालियां को साफ करें और सुरक्षित रखकर जाएं। यही कारण है कि मेला क्षेत्र प्लास्टिक की थाली या गिलास नजर नहीं आए।

दूसरा, प्रशासन ने दोना-पत्तल, कुल्हड़ और कपड़े के थैलों को बहुत अधिक बढ़ावा दिया, जो बायोडिग्रेडेबल हैं। पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचते हैं। मेला प्रशासन ने अपनी ओर से अखाड़ों को दोना-पत्तल, कुल्हड़ और जूट-कपड़े के थैले मुफ्त में वितरित किए। सभी 25 सेक्टरों में इनके स्टॉल्स लगाए। प्लास्टिक मुक्त महाकुंभ को लेकर जनजागरुकता अभियान चलाया। पूरे मेला क्षेत्र को प्लास्टिक फ्री घोषित किया।

प्लास्टिक कचरा एक बड़ा खतरा

आज देश के आगे प्लास्टिक एक गंभीर समस्या बना हुआ है। खासकर प्लास्टिक की थाली, गिलास और चम्मच पर्यावरण को बेहद नुकसान पहुंचा रहे हैं। प्लास्टिक, जो बरसों-बरस तक डिकम्पोज नहीं होता है। इस समस्या को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी कई बार टिप्पणी कर चुका है, लेकिन कोई भी राह इस दिशा में नजर नहीं आ रही है, लेकिन जिस तरह से महाकुंभ में स्टील की थाली व गिलास और कपड़े के थैले ने राह दिखाई है, वो काबिलेतारीफ है।

देश इसका अनुसरण कर एक बड़ी समस्या से निजात पा सकता है। देश में हर वर्ष अरबों प्लास्टिक की थाली, गिलास, चम्मच आदि का इस्तेमाल विभिन्न अवसरों पर होता है। इनकी जगह यदि स्टील का इस्तेमाल हो तो बड़ी राहत मिल सकती है। स्टील को न केवल बार-बार प्रयोग में लिया जा सकता है, बल्कि खराब होने पर ये आसानी से रि-साइकिल भी हो जाता है।

महाकुंभ में आए करोड़ों लोगों ने इस अभियान को देखा है। निश्चित रूप से वो इससे प्रेरित हुए होंगे। आगामी दिनों में हमें शादी, भंडारों और अन्य अवसरों पर प्लास्टिक के बजाय स्टील के बर्तनों का इस्तेमाल देखने को मिल सकता है। कपड़े के थैले को लेकर अभियान देश भर में चलता रहता है। बहुत से संगठन इससे जुड़े हुए हैं, लेकिन स्टील की थाली एक क्रांतिकारी कदम साबित होने वाला है। निश्चित ही महाकुंभ से निकला यह संदेश देश भर में पहुंचेगा।

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