राजस्थान की राजनीति में इन दिनों एक नई बहस छिड़ गई है। कारण है राज्य के ऊर्जा मंत्री के सरकारी आवास पर दो लाख रुपये से अधिक का बकाया बिजली बिल। यह मामला तब और गरमाया जब नागौर से सांसद और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) के संयोजक हनुमान बेनीवाल ने इस मुद्दे को सोशल मीडिया के जरिए उठाया और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से सार्वजनिक तौर पर जवाब मांगा।
क्या है पूरा मामला?
राज्य के ऊर्जा मंत्री के सरकारी आवास पर दो लाख से अधिक का बिजली बिल लंबित है, जबकि आम नागरिकों को थोड़े से बकाया पर भी बिजली काटने की चेतावनी दी जाती है। यह सवाल खड़ा हो गया है कि जब एक आम आदमी के घर पर पांच-दस हजार रुपये के बकाया पर विभाग तुरंत कार्रवाई करता है, तो फिर मंत्री के सरकारी घर की बिजली क्यों नहीं काटी जा रही?
हनुमान बेनीवाल ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल से एक पोस्ट करते हुए लिखा,
“जब आम जनता को हजारों रुपये के बकाया पर बिजली विभाग द्वारा सप्लाई बंद कर दी जाती है, तो ऊर्जा मंत्री के सरकारी आवास की बिजली अभी तक क्यों नहीं काटी गई?”
उन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से सीधा सवाल करते हुए पूछा कि क्या मंत्रियों के लिए बिजली के नियम अलग हैं?
विभाग की कार्यप्रणाली पर उठे सवाल
इस पूरे मामले ने राजस्थान के बिजली वितरण विभाग की कार्यप्रणाली पर भी सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। विभाग जहां आम उपभोक्ताओं पर बकाया के मामले में जुर्माना और कनेक्शन कटने जैसी कार्रवाई करता है, वहीं मंत्री के आवास पर इतनी बड़ी राशि लंबित होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं होना, सरकारी तंत्र की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न लगाता है।
नैतिकता और पारदर्शिता का मुद्दा
सवाल सिर्फ एक बिजली बिल का नहीं है, बल्कि सरकार की जवाबदेही, नैतिकता और पारदर्शिता का है। ऊर्जा मंत्री उसी विभाग के प्रमुख हैं, जिसकी बिजली व्यवस्था पर आम जनता निर्भर है। अगर विभाग अपने ही मंत्री के सरकारी आवास पर बकाया राशि नहीं वसूल पा रहा है, तो फिर आम उपभोक्ताओं से पारदर्शिता की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
यह मामला बताता है कि कैसे सत्ता में बैठे लोगों के लिए नियमों की ढील दी जाती है और आम जनता को नियमों का पालन करवाने के लिए दबाव बनाया जाता है।