3.0kViews
1875
Shares
वाराणसी
सेठ दीनदयाल जालान सेवा ट्रस्ट की ओर से रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में आयोजित “मानस सिंदूर” श्रीराम कथा के पांचवें दिन बुधवार को संवाद करते हुए मानस कथा मर्मज्ञ मोरारी बापू ने एक जिज्ञासा के उत्तर में कहा कि प्रेम से बड़ा कोई ज्ञान नहीं, फिर भी ज्ञान की महिमा अवश्य है। मानस में ज्ञान प्राप्ति के दो साधन बताए गए हैं एक गुरु और दूसरा वैराग्य। गुरु के बिना ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती।
ज्ञान पुस्तकों से प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन किताबी ज्ञान हमें एक हद तक हीं पहुंचा सकता है, जब कि वेद, पुराण, अगम और निगम हमें अनहद तक पहुंचा देंगे। गुरुमुखी वाणी में इस कथन की व्याख्या करते हुए बापू ने कहा कि दादाजी ने समझाया था कि गुरु के मुख से ज्ञान मिलेगा और वह ज्ञान वैराग्य से पचेगा। परमात्मा को प्रतिष्ठा, पैसा या कर्म से नहीं पाया जा सकता। गुरु हमें परमात्मा की प्राप्ति करा सकते हैं।
उन्होंने कहा कि वेदकहते हैं “अहम ब्रह्मास्मि”। लेकिन हमें उसका अनुभव नहीं है। अगर हमें वैरागी गुरु मिले, तो हम ज्ञान को पचा सकते हैं। गुरु से ज्ञान प्राप्त करने के लिए सम्मुख होना आवश्यक है। हमारे कदम भले ही संसार की ओर हों, पर हमारी दृष्टि गुरु के मुख की ओर होनी चाहिए! वक्ता और श्रोता दोनों ही ज्ञान निधि हैं।
मानस के अनुसार श्रोता सुमति, सुशील, शुचिवान, रसिक और दास्यभाव वाला होना चाहिए। इसीलिए तुलसीदासजी ने किसी और को नहीं, बल्कि अपने मन को ही श्रोता बनाया है और कबीरजी ने साधु को श्रोता बनाया है। ग्रंथ का महत्व है, लेकिन ग्रंथ के साथ गुरु भी होना चाहिए, जो शास्त्र का रहस्य खोल दें। गुरु के समझाने के बाद ग्रंथ छूट जाएगा।
सिंदूरदान के साथ शील, सिद्धि, रस भी हुए प्राप्त
सिंदूर महिमा की चर्चा करते हुए बापू ने कहा कि मानस में सात व्यक्ति सोलह बातों से पूर्ण हैं। भगवान राम में सोलह शील हैं, भगवान कृष्ण में सोलह कलाएं हैं, भगवान शंकर में सोलह रस हैं, श्रीहनुमानजी में सोलह विद्याएं हैं, भरतजी में सोलह लक्षण हैं, माता जानकी और माता पार्वतीजी में सोलह ऊर्जा हैं।
भगवान राम जब माता जानकी को सिंदूर दान करते हैं, तो उनके सोलह शील माता जानकी की ऊर्जा में समाहित हो जाते हैं। हनुमानजी ने पूरे शरीर पर सिंदूर लगाया लेकिन जब रामजी श्रीहनुमानजी के माथे पर सिंदूर तिलक किया तो भगवान राम के सोलह शील हनुमानजी में समाहित हो गए।
रामजी ने जब भरतजी का तिलक किया तो वे भी सोलह शीलयुक्त हो गए। शिवजी ने जब माता पार्वती को सिंदूर दान किया तो उनके सोलह रस माता पार्वती में समाहित हो गए। सातवें भगवान महाकाल के मंदिर में विराजमान काकभुशुडी के गुरु परम साधु, जिन पर महाकाल की भस्म का सिंदूर तिलक है।
कागभुशुंडी की शापमुक्ति के लिए उनके गुरु जब महादेव से प्रार्थना करते हुए परम साधु रुद्राष्टक का पाठ करते हैं तो वही रुद्राष्टक की सोलह पंक्तियां परम साधु का सिंदूरी शृंगार हैं। रुद्राष्टक के पाठ से भगवान महाकाल प्रसन्न होते हैं और भुशुंडी को क्षमा कर देते हैं।
शिष्य को श्राप मिलने पर गुरु के हृदय से जो चीख उठी, उसकी शांति के लिए भगवान शिव अपने शरीर से भस्म लेकर परम गुरु के भाल पर लगाने जाते हैं तब माता पार्वती ने अपनी मांग का सिंदूर भगवान शंकर को दिया। भगवती की करुणा, पूर्णता का सिंदूर भगवान शिव परम साधु के भाल पर लगाते है, और उसे शृंगरित करते हैं, यही इस कथा का गुरुमुखी रहस्य है।