बता दें कि संत मोरारी बापू की पत्नी का 11 जून को निधन हो गया था और 14 जून को बाबा विश्वनाथ का दर्शन-पूजन करने के बाद रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में नौ दिवसीय रामकथा ‘मानस सिंदूर’ का शुभारंभ किया।
सूतक काल मे देवालय में दर्शन-पूजन व रामकथा कहने को धर्म विरुद्ध आचरण बताते हुए काशी के कई संतों व विद्वानों ने उनका विरोध किया, कुछ लोगों ने पुतला भी जलाया।
बढ़ता विरोध देखकर दूसरे दिन रविवार को उन्होंने काशी के लोगों से क्षमा मांग ली। विरोध के दौरान अपने ऊपर लगे ‘धर्म का धंधा’ करने के आरोप पर प्रत्युत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि “बहुत से संत हैं जो अत्यंत विलासिता में जीते हैं। मैं कभी किसी से एक पैसा नहीं लेता। बहुत से लोग हैं जो बड़े-बड़े लोगों को पकड़ते हैं और उनसे बड़ी अपेक्षाएं करते हैं।
हां, मैं पहले धन लेता था, लेकिन अब वर्षों से नहीं लेता हूं। मेरे किसी भी जजमान से कोई पूछ सकता है। लगभग 50,000 रुपये तो मेरा अपना ही हर कथा में खर्च हो जाता है। मेरे साथ जितने लगे हुए हैं सबको 500-500 रुपये देता हूं।