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वाराणसी
सूतक काल में रामकथा कहने व बाबा विश्वनाथ के दर्शन-पूजन करने जाने पर उठे विवाद व भारी विरोध के बीच मानस मर्मज्ञ संत मोरारी बापू ने कथा के दूसरे दिन काशीवासियों से माफी मांगी।
सिगरा स्थित रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में कथा के अंत में उन्होंने कहा कि ‘हम आए, शिवजी का दर्शन करने गए, जल चढ़ाया, और कथा गाने लगे, इस बात को कई पूज्य चरणों को, कई महापुरुषों को, कई लोगों को ठीक नहींं लगा है कि ये नहीं होेना चाहिए… वगैरह-वगैरह।
किसी को ठेस लगी हो तो मैं आप सबके प्रति क्षमा प्रार्थी हूं, आप सबसे मैं क्षमा मांग लेता हूं, आप चिंता न करो। हम संवाद करते रहेंगे, कथा गाते रहेंगे। आप सब बड़े हो, हम छोटे हैं तो क्षमा बड़े को चाहिए छोटे का, एक मंगल विधान के दौरान सब हो रहा है फिर भी आप सबको, पूज्य चरणों से लेकर मीडिया तक किसी को भी ठेस पहुंची हो तो क्षमा कर देना, इसमें कौन बड़ी बात है साहब। क्योंकि हमारे बाबा कहते थे, अग्नि में ज्यादा लकड़ी डालने से आग ज्यादा होती है, बाकी खुलासा मैं भी कर सकता हूं, यस! मेरे पास भी शास्त्र है लेकिन इसमें जाना नहीं, आप सब मेरे पूज्य हैं साब, हम आपके हैं, तुम्हारे हैं, तुमसे दुआ मांगते हैं।
इन छोटी-छोटी बातों में क्या हम विलग हो जाएंगे, सनातन धर्म के अवलंब में जिएं, भारतीय संस्कृति के उपासक को कोई विलग नहीं कर सकता। आप सबके प्रति मेरे हृदय की भावना है।
मैं मानस क्षमा प्रार्थना कथा करूंगा, क्योंकि सब हमारे हैं, मैं सबका।’ इसके पूर्व दूसरे दिन की कथा कहते हुए उन्होंने संतों के आचरण व लक्षण पर विस्तार से चर्चा करते हुए कथा की थीम सिंदूर पर भी व्यापक चर्चा की।
बता दें कि संत मोरारी बापू की पत्नी का 11 जून को निधन हो गया था और 14 जून को बाबा विश्वनाथ का दर्शन-पूजन करने के बाद रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में नौ दिवसीय रामकथा ‘मानस सिंदूर’ का शुभारंभ किया।
सूतक काल मे देवालय में दर्शन-पूजन व रामकथा कहने को धर्म विरुद्ध आचरण बताते हुए काशी के कई संतों व विद्वानों ने उनका विरोध किया, कुछ लोगों ने पुतला भी जलाया।
बढ़ता विरोध देखकर दूसरे दिन रविवार को उन्होंने काशी के लोगों से क्षमा मांग ली। विरोध के दौरान अपने ऊपर लगे ‘धर्म का धंधा’ करने के आरोप पर प्रत्युत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि “बहुत से संत हैं जो अत्यंत विलासिता में जीते हैं। मैं कभी किसी से एक पैसा नहीं लेता। बहुत से लोग हैं जो बड़े-बड़े लोगों को पकड़ते हैं और उनसे बड़ी अपेक्षाएं करते हैं।
हां, मैं पहले धन लेता था, लेकिन अब वर्षों से नहीं लेता हूं। मेरे किसी भी जजमान से कोई पूछ सकता है। लगभग 50,000 रुपये तो मेरा अपना ही हर कथा में खर्च हो जाता है। मेरे साथ जितने लगे हुए हैं सबको 500-500 रुपये देता हूं।