उन्होंने कहा कि तीसरी से पांचवीं तक के लिए छात्रों की मातृभाषा में परीक्षा आयोजित करने की आवश्यकता नहीं है। नीति केवल छात्रों को अवधारणाओं को बेहतर ढंग से समझने में मदद करने के लिए मातृभाषा में पढ़ाने पर जोर देती है। सादिक नगर स्थित एक निजी स्कूल की प्रधानाचार्या ने बताया कि उनके स्कूल ने माता-पिता के साथ गूगल फार्म साझा कर भाषायी जानकारी एकत्र करना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि हमारे स्कूल में विभिन्न राज्यों से आने वाले छात्र हैं, जिनकी मातृभाषा अलग-अलग है।
स्कूलों में एक सवाल यह भी उठ रहा है कि अगर पढ़ाई मातृभाषा में कराई जाएगी तो परीक्षा किस भाषा में होगी। कई प्रधानाचार्यों ने सवाल उठाया कि क्या यह उचित होगा कि छात्रों को मातृभाषा में पढ़ाया जाए और परीक्षा अंग्रेजी में ली जाए, जैसा कि अधिकतर निजी स्कूलों में होता है। वहीं सरकारी स्कूलों में हिंदी या क्षेत्रीय भाषाएं पहले से ही प्रमुख भाषा के रूप में उपयोग में लाई जाती हैं, इसलिए वहां समस्या अपेक्षाकृत कम है।
दिल्ली के अधिकतर स्कूलों में प्री-प्राइमरी से लेकर पांचवीं तक के छात्रों के बीच हिंदी सबसे आम मातृभाषा है और पहले से ही हिंदी व अंग्रेजी के माध्यम से शिक्षण हो रहा है। कई स्कूलों ने लैंग्वेज ट्री नामक एक प्रणाली भी शुरू की है जिसमें छात्रों को अन्य भाषाओं के भी कुछ शब्द सिखाए जा रहे हैं ताकि बहुभाषीय माहौल तैयार हो सके।