रेलवे भर्ती बोर्ड गोरखपुर के अध्यक्ष नुरुद्दीन अंसारी और निजी सचिव रहे राम सजीवन निलंबित हो चुके हैं। गोरखपुर के विजिलेंस इंस्पेक्टर भी हटा दिए गए हैं। पूर्व मुख्य कार्यालय अधीक्षक चंद्र शेखर आर्या और राम सजीवन के खिलाफ कैंट थाने में मुकदमा दर्ज है।
दरअसल, रेलवे भर्ती बोर्ड कार्यालय का फर्जीवाड़ा कोई नया नहीं है। इसके पहले भी तकनीशियन व लोकोपायलट 2018 भर्ती प्रक्रिया में अनियमितता के मामले प्रकाश में आ चुके हैं। नवंबर 2022 में दिल्ली विजिलेंस की छापेमारी में मिली अनियमितताओं के बाद रेलवे बोर्ड ने रेलवे भर्ती बोर्ड गोरखपुर के तत्कालीन अध्यक्ष सहित कार्यालय के सभी कर्मचारियों को हटाने का निर्देश जारी कर दिया था। तकनीशियन व लोकोपायलट की भर्ती में ही लखनऊ व वाराणसी मंडल में रिक्त पदों के सापेक्ष डेढ़ गुना अधिक भर्ती का विज्ञापन निकालकर परीक्षा आरंभ करा दी थी।
1681 अभ्यर्थियों की परीक्षा के बाद भर्ती आरंभ हुई तो फर्जीवाड़ा का खुलासा हुआ। अनियमितता का आलम यह है कि आज तक यह भर्ती प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई और वेटिंग के अभ्यर्थी भर्ती बोर्ड कार्यालय और कार्मिक विभाग का चक्कर लगाते रहे। रेलवे बोर्ड अध्यक्ष के हटाए जाने के बाद पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्य कार्मिक अधिकारी नुरुद्दीन अंसारी को बोर्ड अध्यक्ष बनाया गया। व्यवस्था बदलने के बाद भी फर्जीवाड़ा चलता रहा।
यह है प्रकरण

रेलवे भर्ती बोर्ड कार्यालय गोरखपुर में तैनात दो रेलकर्मियों ने 26 अप्रैल, 2024 को जारी पैनल में फर्जी ढंग से अपने बेटों का नाम शामिल कर दिया था। सात अभ्यर्थियों के पैनल में बिना फार्म भरे, परीक्षा दिए, बिना मेडिकल टेस्ट और बिना अभिलेखों की जांच कराए ही अपने बेटों को शामिल कर नौ कर दिया।
रेलवे भर्ती बोर्ड के अध्यक्ष के हस्ताक्षर से ही पैनल जारी हुआ। कार्यालय अधीक्षक चंद्र शेखर आर्य के बेटे राहुल प्रताप और निजी सचिव (द्वितीय) राम सजीवन के बेटे सौरभ कुमार बिना फार्म भरे, परीक्षा दिए और मेडिकल टेस्ट के ही माडर्न कोच फैक्ट्री रायबरेली में फिटर बन गए थे।