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शाहजहांपुर
ट्रेन से मोबाइल चोरी को लेकर हुए विवाद के दौरान जिस व्यक्ति की हत्या के आरोप में अयोध्या निवासी नरेन्द्र दुबे तीन वर्ष से जेल में सजा काट रहे थे, वह युवक जीवित निकला। बिहार में उसकी ससुराल से कुछ लोगों ने वीडियो बनाकर इंटरनेट मीडिया पर प्रसारित कर दिया। जानकारी होने पर न्यायालय में पेश किया गया, जिसके बाद अपर जिला जज ने अभियुक्त को दोषमुक्त करते हुए रिहा करने का आदेश दिया।
अभियोजन पक्ष ने बताया कि बरेली जीआरपी थाने पर 16 दिसंबर, 2022 की रात तैनात सत्यवीर सिंह को जानकारी मिली कि दिल्ली-अयोध्या एक्सप्रेस के जनरल कोच डी टू में दो लोगों के बीच मारपीट हुई, जिसमें एक व्यक्ति ने दूसरे को तिलहर स्टेशन के पास किसी स्थान पर चलती ट्रेन से बाहर फेंक दिया है।
अयोध्या की पहाड़गंज कॉलोनी निवासी आलोक ने फोन से इसकी सूचना देते हुए घटना का वीडियो भी भेजा था। रात करीब एक बजे ट्रेन बरेली जंक्शन पर पहुंची तो सत्यवीर सिंह ने ट्रेन से बाहर फेंकने वाले अयोध्या के खेमासराय गांव निवासी नरेन्द्र दुबे को पकड़ लिया।
तिलहर पुलिस ने रेलवे ट्रैक के पास शव भी बरामद कर लिया। घटना के समय कोच में पास खड़े बाराबंकी निवासी अजनी व दिलदार के बयान के आधार पर प्राथमिकी कर नरेन्द्र को जेल भेज दिया गया। मृतक की पहचान बिहार निवासी एताब के रूप में स्वजन ने की। मामले में न्यायालय में आरोपपत्र प्रस्तुत किया गया।
बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने कहा कि नरेन्द्र ने हत्या नहीं की है, क्योंकि एताब जीवित है। सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता श्रीपाल वर्मा ने भी कहा कि जिस व्यक्ति की हत्या का आरोप है, वह अभी जिंदा है। शव की शिनाख्त उसके पिता व अन्य रिश्तेदारों ने की थी। ऐसी स्थिति में अभियोजन का कोई दोष नहीं है।
अभियोजन का काम किसी को सजा दिलवाना नहीं है, बल्कि सत्य को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना है। विवेचक को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि शव की शिनाख्त एताब के स्वजन ने की थी। इसलिए अभियुक्त दोषमुक्त किये जाने योग्य है। अपर जिला जज पंकज कुमार श्रीवास्तव ने उनके तर्कों व साक्ष्य से सहमत होते हुए नरेन्द्र को दोषमुक्त करते हुए रिहा करने के आदेश दिए।
उन्होंने आदेश में कहा कि किसी भी प्रकरण में अपराध को साबित करने का भार अभियोजन का होता है। अभियोजक न्यायालय का मित्र होता है और उसे न्याय प्रदान करने के लिए न्यायालय की हरसंभव सहायता करनी चाहिए। यह कहना बहुत मुश्किल है कि जो व्यक्ति मरा वह व्यक्ति कौन था। इसकी जांच जीआरपी को इस निर्णय के बाद जरूर करनी चाहिए।
आठ माह बाद पहुंचा घर:
बिहार निवासी याकूब ने बताया कि उनका बेटा एताब वर्ष 2022 में दिल्ली में कढ़ाई बुनाई का काम सीखने गया था। 18 दिसंबर को मोहल्ले के लोगों ने फेसबुक पर तिलहर में हुई घटना में बरामद शव का फोटो दिखाया तो उन्हें एताब का लगा। दामाद सोहराब व अन्य रिश्तेदारों के साथ यहां 21 दिसंबर को आकर शव के हुलिए के आधार पर बेटे की पहचान की और यहां कब्रिस्तान में दफना दिया। घर जाकर उसका 40वां भी कर दिया।
बहू अपने दोनों बच्चे लेकर मायके चली गई। घटना के लगभग आठ माह बाद एताब घर वापस आया तो वे लोग हैरान रह गए। उसने बताया कि वह जिस ट्रेन में विवाद हुआ उसमे वह था ही नहीं। वह दिल्ली से गुजरात चला गया था। मुहल्ले वालों ने उसका वीडियो बनाकर फिर से फेसबुक पर डाल दिया।
जीआरपी को जब जानकारी हुई तो एताब, याकूब व अन्य स्वजन को यहां लेकर आई, लेकिन उस समय कार्रवाई के बिना उन लोगों को फिर से वापस भेज दिया गया। न्यायालय में चल रहे मुकदमे में दो जून को उसे फिर से बुलाया गया। जिसमें उसने बताया कि वह परिवार के साथ कुढ़नी के तारसन में रह रहा है।