3.3kViews
1933
Shares
पटना
बिहार सरकार राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था को सशक्त बनाने की दिशा में लगातार महत्वपूर्ण कदम उठा रही है। ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरी अस्पतालों तक स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए व्यापक सुधार योजनाएं लागू की जा रही हैं। बिहार सरकार राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं को और सशक्त बनाने की दिशा में बड़ा कदम उठाने जा रही है।
स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय ने बड़ी घोषणा की है कि राज्य में आशा कार्यकर्ताओं और आशा फैसिलिटेटरों की संख्या में बड़ा इजाफा किया जाएगा। अगले तीन महीनों के भीतर 27,375 नये आशा कार्यकर्ताओं और फैसिलिटेटरों की नियुक्ति की जाएगी। यह चयन प्रक्रिया बहुत जल्द शुरू होने वाली है।
इसके साथ ही स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय ने बताया कि बहुत जल्द ग्रामीण क्षेत्रों में 21 हजार 9, शहरी क्षेत्रों में 5316 आशा कार्यकर्ताओं का चयन ग्राम सभाओं और नगर निकायों के माध्यम से किया जाएगा। इसके अलावा 1050 आशा फैसिलिटेटरों की भी नियुक्ति होगी, जो आशा कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन और निगरानी करेंगी।
– ग्रामीण क्षेत्रों में 21,009 आशा कार्यकर्ता
– शहरी क्षेत्रों में 5,316 आशा कार्यकर्त
– आशा फैसिलिटेटर की 1,050 नई नियुक्तियां
वर्तमान में आशा कार्यकर्ताओं की स्थिति
मालूम हो कि वर्तमान में बिहार में 91,281 आशा कार्यकर्ता और 4,361 आशा फैसिलिटेटर कार्यरत हैं। इसके अलावा राज्य में 5,111 ममता कार्यकर्ता भी अपनी सेवाएं दे रही हैं। आशा कार्यकर्ताओं की अथक प्रयास के कारण बिहार में मातृ स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) और स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (एचएमआईएस) के आंकड़े इस प्रगति को दर्शाते हैं-
-2005-06 (एनएफएचएस-3) में केवल 18.7% गर्भवती महिलाओं ने गर्भावस्था के प्रथम त्रैमास में प्रसव पूर्व जांच (एएनसी) करवाई थी।
-2019-20 (एनएफएचएस-5) में यह आंकड़ा बढ़कर 52.9 प्रतिशत तक पहुंच गया।
-एचएमआईएस के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक वर्तमान में 77 प्रतिशत महिलाएं प्रारंभिक एएनसी सेवाएं ले रही हैं।
-लगभग 85 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं चार बार प्रसव पूर्व जांच एएनसी करवा रही हैं।
-97 प्रतिशत महिलाएं गर्भावस्था के समय पर पंजीकरण करवा रही हैं।
यह प्रगति आशा कार्यकर्ताओं की सक्रिय भूमिका, जन-जागरूकता अभियानों और स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतर पहुंच का प्रतिफल है। वर्ष 2005-06 में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-3) के अनुसार देश में संस्थागत प्रसव का प्रतिशत मात्र 19.9 प्रतिशत था।
यह आंकड़ा स्वास्थ्य सेवाओं की सीमित पहुंच और जागरूकता की कमी को दर्शाता था लेकिन वर्ष 2019-20 में आए एनएफएचएस-5 के अनुसार यह आंकड़ा बढ़कर 76.2 प्रतिशत तक पहुंच गया है, जो एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। राज्य के स्वास्थ्य सेवाओं को और मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।