Wednesday, June 25, 2025
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13 साल बाद अमेरिकी उपराष्ट्रपति की भारत यात्रा पर सबकी निगाहें, ट्रेड डील, इंडो-पैसिफिक रणनीति , क्वाड और टेक्नोलॉजी से नए अवसर खुलेंगे

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अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस सोमवार को पत्नी उषा, बच्चों इवान, विवेक और मीराबेल के साथ भारत पहुंचे हैं। उपराष्ट्रपति बनने के बाद यह जेडी वेंस का पहला आधिकारिक भारत दौरा है। वे 4 दिन भारत में रहेंगे। 13 साल में यह किसी अमेरिकी उपराष्ट्रपति की पहली भारत यात्रा होगी। पिछली बार जो बाइडेन उपराष्ट्रपति के रूप में 2013 में भारत आए थे। जेडी वेंस का भारत दौरा दो वजहों से अहम है। इस वक्त भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील, टैरिफ को लेकर तनाव की स्थिति है। प्रधानमंत्री और उपराष्ट्रपति वेंस के बीच व्यापार, टैरिफ, क्षेत्रीय सुरक्षा और बाइलेट्रल कोऑपरेशन को बढ़ाने के तरीकों सहित कई अहम मुद्दों पर बातचीत होगी। टैरिफ वॉर को लेकर दुनिया में चल रही रस्साकसी के बीच यह दौरा किस तरह की संभावनाओं को लेकर आएगा। वहीं ही जेडी वेंस ने 3 महीने में 5 विदेशी दौरे किए, हर जगह विवाद हुआ है।

टैरिफ वॉर और ट्रेड डील का असर

विदेश नीति और रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ गौरव गोयल कहते हैं कि जब प्रधानमंत्री मोदी फरवरी में अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप से मिलने गए थे, तो ट्रेड डील की घोषणा की बात चली थी। प्रक्रिया तेज करने की बात भी हुई थी, लेकिन यह एक चल रही प्रक्रिया है। अब तक कोई ठोस परिणाम तो नहीं आया, लेकिन हां, दोनों पक्षों ने बातचीत को आगे बढ़ाया है। इसकी एक बड़ी वजह यह भी थी कि ट्रंप प्रशासन ने 90 दिन की एक डेडलाइन तय की थी, जिसके बाद अमेरिका को यह तय करना था कि बातचीत जारी रखी जाए या टैरिफ (आयात शुल्क) लागू किया जाए। अमेरिका के लिए यह अहम था क्योंकि भारत अमेरिका को अपने कुल निर्यात का लगभग 18% भेजता है। परंतु ये 90 दिन असमंजस से भरे रहे, केवल बातचीत ही होती रही, कोई बड़ी घोषणा नहीं हो सकी। फिर भी, बातचीत आगे बढ़ी है। भारत के लिए यह दौरा प्रतीकात्मक रूप से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि चाहे बाइडन हों या ट्रंप, दोनों ने भारत-अमेरिका रणनीतिक सहयोग की बात की है।

पार्ले पॉलिसी इनिशिएटिव, दक्षिण कोरिया के विशेष सलाहकार (दक्षिण एशिया) के नीरज सिंह मनहास कहते हैं कि जेपी वेंस की भारत यात्रा ऐसे समय हो रही है जब भारत और अमेरिका के बीच शुल्क को लेकर व्यापारिक तनाव महत्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है। वेंस इस यात्रा के दौरान एक संभावित व्यापार समझौते को आगे बढ़ाने के लिए वार्ता करेंगे। हालांकि इस दौरे में किसी ठोस समझौते की संभावना कम है, फिर भी ये बातचीत तकनीक और कृषि उत्पादों जैसे क्षेत्रों में लंबे समय से चले आ रहे शुल्क विवादों को हल करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हो सकती है। चर्चा का एक प्रमुख पहलू यह है कि भारत अमेरिका से होने वाले अपने आधे से अधिक आयात पर शुल्क घटाने को तैयार है, जो व्यापारिक तनाव को कम करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम होगा। इससे अमेरिका की ओर से संभावित जवाबी शुल्क लगाने की स्थिति से बचा जा सकेगा और दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंध मजबूत होंगे। हालांकि, इन मुद्दों का पूर्ण समाधान समय लेगा और यात्रा के बाद भी निरंतर कूटनीतिक प्रयास आवश्यक रहेंगे।

भारत अमेरिका रणनीतिक साझीदारी को मजबूती

गौरव कहते हैं कि बात करें तकनीकी सहयोग की तो रणनीतिक तकनीकों को लेकर कई बार आधिकारिक घोषणाएं हुई हैं। उदाहरण के तौर पर, ICET (Initiative on Critical and Emerging Technologies) के ज़रिए भारत-अमेरिका के बीच सहयोग की कोशिश हुई है। लेकिन इसमें भी चुनौतियां हैं क्योंकि अमेरिका खासतौर पर ट्रंप प्रशासन ने बार-बार ऐसे क्षेत्रों में साझेदारी की घोषणा की जो काफी उन्नत और संवेदनशील हैं, जैसे कि को-प्रोडक्शन, को-डिज़ाइन, को-मैन्युफैक्चरिंग। यहां दोनों देशों के लक्ष्य थोड़े अलग हो सकते हैं जिन्हें एक साथ लाना एक बड़ी चुनौती है। इस रणनीतिक साझेदारी की शुरुआत 2000 के मार्च में हुई थी, जब बिल क्लिंटन भारत आए थे। तब से लेकर अब तक, चाहे दिल्ली में कोई भी सरकार हो या वॉशिंगटन में, रिश्ते मज़बूत बने रहे हैं।

गौरव गोयल मानते हैं कि इस यात्रा को राजनयिक जुड़ाव के रूप में देखा जाना चाहिए। भले ही वैश्विक ताकतों की होड़ में भारत अपनी स्वायत्त नीति अपनाता है, लेकिन एक बहुध्रुवीय दुनिया में उसकी रणनीतिक साझेदारियों का अपना महत्व है। हालांकि प्राथमिकताओं में मतभेद हैं, लेकिन फिर भी पिछले 25 वर्षों से भारत और अमेरिका साथ चले हैं। वह कहते हैं कि 2000 में जब बिल क्लिंटन भारत आए, तो यह मोड़ था। चीन की स्थिति को लेकर अमेरिका और भारत के विचार हमेशा मेल नहीं खाते। चीन के संदर्भ में, भारत ने कई बार यह स्पष्ट किया है कि वह अमेरिका के हर रुख का समर्थन नहीं करेगा।

नीरज सिंह मनहास कहते है कि जेपी वेंस की यह यात्रा भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी को विशेष रूप से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के संदर्भ में मजबूती देने की दिशा में अहम मानी जा रही है, जहां दोनों देश चीन के बढ़ते प्रभाव का सामना करने पर केंद्रित हैं। अमेरिका भारत को इस क्षेत्र में एक प्रमुख लोकतांत्रिक सहयोगी के रूप में देखता है और यह यात्रा रक्षा और तकनीकी सहयोग को बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण हो सकती है। बातचीत में संभावित रक्षा परियोजनाओं में सहयोग, अमेरिकी रक्षा उपकरणों की खरीद, और अंतरिक्ष अनुसंधान व साइबर सुरक्षा जैसे उभरते तकनीकी क्षेत्रों में भागीदारी जैसे मुद्दों पर चर्चा होने की संभावना है। चीन की आक्रामकता के बीच भारत की भूमिका क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखने में अहम है और अमेरिका इस साझेदारी को और गहरा करने का इच्छुक है।

कूटनीतिक चुनौतियां और अवसर

नीरज बताते हैं कि जेपी वेंस की वैचारिक सोच और उनके पिछले कुछ विवादास्पद विदेशी दौरे भारत के लिए इस यात्रा में कुछ कूटनीतिक चुनौतियाँ और अवसर दोनों लेकर आते हैं। विशेषकर रोम यात्रा के दौरान उनकी कुछ गतिविधियों की आलोचना हुई थी, जिससे उनकी कूटनीतिक छवि प्रभावित हुई। इससे भारत में उनके स्वागत और बातचीत की प्रकृति पर प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि भारत में कूटनीतिक शिष्टाचार और सांस्कृतिक संवेदनशीलता को काफी महत्व दिया जाता है। हालांकि, वेंस की पत्नी उषा वेंस की भारतीय पृष्ठभूमि एक सांस्कृतिक पुल की भूमिका निभा सकती है और इससे बातचीत का माहौल अधिक अनौपचारिक और मैत्रीपूर्ण हो सकता है। यह संबंध तकनीक, रक्षा और व्यापार जैसे क्षेत्रों में सहयोग को गहराने का एक अवसर भी प्रदान करता है, विशेषकर तब जब वेंस को एक ऐसे उपराष्ट्रपति के रूप में देखा जा रहा है जिनका विदेशी संबंधों का अनुभव जटिल रहा है।

गौरव कहते हैं कि इमिग्रेशन नीति को लेकर भी मतभेद हैं। अमेरिका में भारत, बांग्लादेश आदि से आए अवैध प्रवासियों के साथ जैसा व्यवहार होता है, वह भारतीय सांस्कृतिक सोच से मेल नहीं खाता। अमेरिका में उन्हें डिटेंशन में रखा जाता है, जो हमारे लिए असहनीय है। यह दौरा उस राजनीति को भी दर्शाता है जो अमेरिका और भारत के आंतरिक राजनीतिक विमर्श से जुड़ी है। भारत में कुछ लोग इस दौरे को दक्षिणपंथी गठजोड़ के संकेत के रूप में देखते हैं, तो कुछ इसे वैश्विक साझेदारी का प्रतीक मानते हैं।

व्यापार से आगे बढ़ते सहयोग के संकेत

नीरज सिंह मनहास मानते हैं कि व्यापार के इतर, जेपी वेंस की यह यात्रा भारत-अमेरिका सहयोग को तकनीक, रक्षा और ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में आगे बढ़ाने का संकेत देती है। दोनों देशों के बीच रक्षा उपकरणों के सह-उत्पादन और साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में पहले से ही सहयोग की शुरुआत हो चुकी है। वेंस की इस यात्रा के दौरान कृत्रिम बुद्धिमत्ता, अंतरिक्ष तकनीक और हरित ऊर्जा जैसे आधुनिक क्षेत्रों में साझेदारी की संभावनाएं टटोली जाएंगी। इसके अलावा, भारतीय और अमेरिकी टेक कंपनियों के बीच नवाचार के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देने पर भी चर्चा हो सकती है। ऊर्जा सुरक्षा के क्षेत्र में, विशेष रूप से नवीकरणीय और परमाणु ऊर्जा पर सर्वश्रेष्ठ प्रथाओं के साझा करने पर भी सहमति बन सकती है। ये सभी पहलू दोनों देशों की दीर्घकालिक रणनीतिक प्राथमिकताओं के अनुरूप हैं और आने वाले समय में ठोस समझौतों का आधार बन सकते हैं।

गौरव मानते हैं कि रक्षा, सैन्य गठबंधन, क्वाड, और स्पेस टेक्नोलॉजी के मामलों में अमेरिका काफी मुखर है। वहीं निचली राजनीति यानी कूटनीतिक बातचीत और संचालन से जुड़े मसलों पर भी दबाव है। यह दौरा दो स्तरों पर खेली जा रही रणनीतिक बिसात जैसा है जिसे ‘टू-लेवल गेम थ्योरी’ में समझा जा सकता है। एक ओर अंतरराष्ट्रीय स्तर की रणनीति है, दूसरी ओर घरेलू राजनीति का दबाव भी।

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