नई दिल्ली
जलवायु परिवर्तन के चलते आने वाले समय में खाद्य सुरक्षा के लिए बड़ा संकट पैदा हो सकता है। सरकार की ओर से संसद में दी गई जानकारी के मुताबिक बदलते मौसम के चलते आने वाले समय में गेहूं और चावल के उत्पादन पर असर पड़ सकता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की ओर से वर्षा पैटर्न पूर्वानुमान और फसल उपज पर किए गए अध्ययन के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के चलते वर्षा आधारित चावल के उत्पादन में 2050 तक 20 फीसदी तक, वहीं सिंचित खेती में 5 फीसदी तक की कमी आ सकती है। इसी दौरान गेहूं का उत्पादन 19.3 फीसदी तक घट सकता है। सरकार जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए सिंचाई के लिए जल प्रबंधन के साथ ही नई और बढ़ती गर्मी को बर्दाश्त करने वाली प्रजातियों को विकसित करने पर जोर रही है।
सरकार जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कई तरह से तैयारी कर रही है। प्रतिकूल मौसम परिस्थितियों एवं संवेदनशील जिलों एवं क्षेत्रों के लिए उपयुक्त जलवायु अनुकूल कृषि प्रौद्योगिकी विकसित की जा रही है। इसके तहत स्थान के आधार पर मिट्टी के पोषक तत्वों के प्रबंधन पर काम किया जा रहा है। वहीं अनुपूरक सिंचाई, सूक्ष्म सिंचाई, पानी की बेहतर निकासी, मृदा में सुधार आदि को बढ़ाने का भी प्रयास किया जा रहा है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल प्रोटोकॉल के मुताबिक कृषि में जोखिम और संवेदनशीलता का मूल्यांकन भी किया है। कुल 109 जिलों को अति उच्च और 201 जिलों को अत्यधिक संवेदना के तौर पर चिन्हित किया गया है। कुल 151 जिलों में कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से अनुकूल उपाय अपनाए जा रहे हैं। मौसम की अनियमित स्थिति से मुकाबला करने के लिए कुल 651 जिलों के लिए जिला कृषि आकस्मिकता योजना भी विकसित की गई है।
जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप हो रही असमय बारिश और बढ़ती गर्मी से गेहूं के उत्पादन में गिरावट और स्वाद में बदलाव की आशंका है। कृषि मंत्रालय और देश के प्रमुख कृषि विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों की ओर से अगले दो दशकों में फसलों के उत्पादन मॉडलों पर किए गए अध्ययनों का यह परिणाम चिंताजनक है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा के किसान भी अपने अनुभव से इन अध्ययन रिपोर्ट से सहमत हैं। जलवायु परिवर्तन के इन दुष्प्रभावों से निपटने के लिए गर्मी सह सकने वाली किस्मों के बीज और बुवाई के कैलेंडर में बदलाव किया जा रहा है। इसके शुरुआती प्रयोग सकारात्मक हैं। तमाम अध्ययनों में खास तौर से फरवरी में बढ़ते तापमान पर चिंता जताई गई है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने देश के 573 ग्रामीण जिलों में जलवायु परिवर्तन से भारतीय कृषि पर खतरे का आकलन किया है। इस आकलन के अनुसार 2020 से 2049 तक 256 जिलों में अधिकतम तापमान 1 से 1.3 डिग्री सेल्सियस और 157 जिलों में 1.3 से 1.6 डिग्री सेल्सियस बढ़ने की उम्मीद है। इससे गेहूं की खेती प्रभावित होगी। इंटरनेशनल सेंटर फॉर मेज एंड व्हीट रिसर्च के प्रोग्राम निदेशक डॉ. पीके अग्रवाल के एक अध्ययन के मुताबिक तापमान एक डिग्री बढ़ने से भारत में गेहूं का उत्पादन 4 से 5 मिलियन टन तक घट सकता है। तापमान 3 से 5 डिग्री बढ़ने पर उत्पादन में 19 से 27 मीट्रिक टन तक कमी आएगी।
गेहूं में पोषक तत्व घटे, स्वाद पर भी असर
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान और विधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय, पश्चिम बंगाल से जुड़े कई संस्थानों के वैज्ञानिकों के शोध में गेहूं और चावल में पोषण कम होने की बात सामने आयी है। इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता सोवन देबनाथ बताते हैं कि चावल व गेहूं में आवश्यक पोषक तत्वों का घनत्व अब उतना नहीं है, जितना 50 साल पहले होता था। इनमें मुख्य रूप से जिंक और आयरन की कमी हो गई है।