रंगजी के रथ मेला के दीवाने थे अंग्रेज अफसर

दक्षिण भारतीय परंपरा के रंगजी मंदिर में आयोजित होने वाले ब्रह्मोत्सव का मुख्य आकर्षण रथ का मेला है। अंग्रेजी शासन में यह उत्तर भारत का बड़ा मेला था। भरतपुर महाराज का सैनिक दस्ता बैंड के साथ इस मेला का हिस्सा होता था। अंग्रेज अफसर भी इस मेले के दीवाने हो गए। अंग्रेजों के शासन के समय जिला मजिट्रेट रहे एफएम ग्राउस ने अपनी पुस्तक में रथ मेला का विशेष रूप से उल्लेख किया है रंगजी मंदिर का रथ का मेला (ब्रह्मोत्सव) मंदिर निर्माण के समय से ही लोकप्रिय रहा है। मेले की रौनक जितनी प्राचीनकाल में थी, आज भी इसी प्रकार की है। इसे उत्तर भारत का सबसे बड़ा मेला आज भी माना जाता है।

यूरापियन-श्रद्धालु पर्यटक भी आते थे

रथ के मेले ने स्थानीय लोगों के साथ आसपास के जिलों के लोगों को ही नहीं बल्कि यूरोपियन श्रद्धालु-पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित किया है। विक्रम संवत् 1981, सन् 1924 में अशोथर जिला फुलेपुर रियासत के राजा अपने बिल्लेदार सहित ब्रह्मोत्सव देखने आते थे। 20वीं शताब्दी में बुंदेलखंड के प्रतापी राजा छत्रसाल बुंदेला की परिवर्ती पीढ़ी में रानी कुंवरि ने भी इसका उल्लेख वृंदावन यात्रा के दौरान किए गए विवरण में किया है।