एनवायरो कैटलिट्स के संस्थापक एवं मुख्य विश्लेषक सुनील दहिया का कहना है कि राष्ट्रीय राजधानी में पर्यावरण का मुददा सियासी आरोप-प्रत्यारोप का हाट केक तो बन गया है, लेकिन इसके समाधान की दिशा में जनप्रतिनिधि भी गंभीर नहीं हैं।

पूरे साल इन पर काम किया ही नहीं जाता

सर्दियों का मौसम आने और गैस चैंबर बनने की स्थिति में ही तमाम कदम उठाए जाते हैं। मार्च में हालात बदलने पर ग्रेप तक हट जाता है। सब निश्चिंत हो जाते हैं। यह सोचा ही नहीं जाता कि अगली सर्दियों को बेहतर बनाने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं। चाहे धूल हो या धुआं, खुले में कचरा जलाना हो या पराली, प्रतिबंधित ईंधन का प्रयोग हो या अन्य कारक, पूरे साल इन पर काम किया ही नहीं जाता। लंदन, बीजिंग और लास-एंजेलेस के जैसे ही आज दिल्ली और आस-पास के इलाके के लिए भी पर्याप्त प्रदूषण के आंकड़े, उनको स्त्रोत, उत्सर्जन एवं उसको कम करने की लिए प्रयोग में लाई जाने वाली प्रौद्योगिकी सब मौजूद है।

प्रदूषण नियंत्रण की गति काफी धीमी

आज सरकार को पता है कि किस जगह और किस कारखाने या क्षेत्र से कितना प्रदूषण उत्सर्जन हो रहा है और यह मौसम संबंधी कारकों से मिलकर किस किस जगह पर किस समय में वहां की हवा को प्रदूषित करने में कितना योगदान देंगे, लेकिन आक्रामक लक्ष्यों, स्रोत पर उत्सर्जन भार में कमी की सुदृढ़ निति, अंतरविभागीय एवं अंतरसरकारी समन्वय के अभाव व मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव के कारण प्रदूषण नियंत्रण की गति काफी धीमी है और दिल्ली साफ हवा के स्तर से काफी दूर है।

सड़क की धूल भी एक महत्वपूर्ण स्रोत बनी हुई

सेंटर फार साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) की प्रोजेक्ट मैनेजर (क्लीन एयर) शाम्भवी शुक्ला कहती हैं कि दिल्ली के प्रदूषण के लगभग 12-13 स्रोतों में से शीर्ष योगदानकर्ता वाहन, उद्योग, निर्माण कार्य, अपशिष्ट जलाना एवं आवासीय ठोस ईंधन हैं। सड़क की धूल भी एक महत्वपूर्ण स्रोत बनी हुई है। वाहनों से टेलपाइप उत्सर्जन को कम करने के लिए हालांकि कठिन तकनीकों को क्रियान्वित किया गया, लेकिन इसके बाद भी वाहन संख्या और यातायात जाम ने इसे निष्प्रभावी कर दिया। ऐसा केवल इसलिए है क्योंकि समन्वित और एकीकृत सार्वजनिक परिवहन प्रणाली के लिए प्रयासों में तेजी नहीं आई है।

कार्रवाई में खामियां बनी हुईं

अपने औद्योगिक क्षेत्रों को कोयले और अन्य प्रदूषणकारी ईंधन से हटाकर प्राकृतिक गैस की ओर ले जाने के बावजूद, एनसीआर के उद्योगों से उत्सर्जन अभी भी जारी है। नगर निगम द्वारा कचरे के अपर्याप्त प्रबंधन ने कचरा जलाने की समस्या को बढ़ा दिया है। निर्माण और विध्वंस अपशिष्ट प्रबंधन एवं निर्माण धूल पर कार्रवाई आगे बढ़ाने के बाद भी, कार्रवाई में खामियां बनी हुई हैं।

प्रदूषण नियंत्रण में पूर्ववर्ती आप सरकार की विफलता के कारण

  • ठोस और कारगर उपाय करने के बजाय चर्चा में आने वाले कदम उठाए गए। इसीलिए अपेक्षित परिणाम नहीं निकल पाए।
  • विभिन्न विभागों में आपसी सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाना।
  • बैठकों में लिए गए निर्णय जमीनी स्तर पर लागू नहीं हो पाना।
  • सख्ती और निरीक्षण में भेदभाव अपनाना। जुर्माना भी केवल केंद्र सरकार की परियोजनाओं पर लगाना, दिल्ली सरकार की परियोजनाओं पर नहीं।
  • सच को दरकिनार आरोप प्रत्यारोप की राजनीति में ही उलझे रहना।