इस साल होलिका दहन 13 मार्च गुरुवार को रात्रि 11:26 के बाद ही होगा। वहीं 14 मार्च को दोपहर के बाद रंग वाली होली खेली जाएगी। आइए जानते हैं होलिका दहन के आवश्यक नियम और पूजा विधि…
इस वर्ष श्री शुभ विक्रमीय संवत्, 2081 को फाल्गुन शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि दिनांक 13 मार्च 2025, गुरुवार को सूर्योदय से लेकर सुबह 10:35 तक व्याप्त रहेगी, तत्पश्चात पूर्णिमा तिथि आरम्भ हो जाएगी। भद्रा करण, सुबह 10:35 से आरम्भ होकर रात्रि 11:26 तक रहेगा। अत: होलिका दहन 13 मार्च गुरुवार को रात्रि 11:26 के बाद ही होगा। व्रत की पूर्णिमा भी 13 मार्च को होगी। भद्रा में होलिका दहन का निषेध हमारे धर्मशास्त्रो में लिखा है। अत: भद्रा के बाद ही होलिका दहन धर्मसम्मत है। होलिका दहन का मुहूर्त रात्रि 11 बजकर 26 मिनट से रात्रि 12 बजकर 18 मिनट तक रहेगा।
शुक्रवार, 14 मार्च 2025 को स्नान दान की पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्रयुता परम पुण्यदायिनी फाल्गुनी पूर्णिमा दोपहर 12:23 तक रहेगी। इसके पश्चात चैत्र कृष्ण प्रतिपदा प्रारंभ होगी। इसलिए 14 मार्च को दोपहर के बाद रंग वाली होली रहेगी। किंतु उदया तिथि के अनुसार 15 मार्च को प्रतिपदा सूर्योदय के समय व्याप्त रहेगी, इसलिए 14 मार्च शुक्रवार को अंझा रहेगा।
चैत्र कृष्ण प्रतिपदा तिथि, 15 मार्च शनिवार को सूर्योदय से दोपहर 02 बजकर 33 मिनट तक रहेगी, अत: धुरड्डी (छारेन्डी) जिसे शुद्ध रूप से होलिका विभूति धारण कहा जाता है वह शनिवार को मनाना ही धर्मसम्मत है।
16 मार्च को द्वितीया तिथि सूर्योदय से सायंकाल 5 बजे तक रहेगी इसलिए भाई दूज का पर्व 16 मार्च रविवार को मनाया जाएगा।14 मार्च को होली के दिन चंद्र ग्रहण लगेगा। हालांकि इस ग्रहण का प्रभाव भारत में नहीं होने की वजह से यहां पर ग्रहण का सूतक काल मान्य नहीं होगा। यह ग्रहण भारत में नहीं दिखाई देगा इसलिए यहां ग्रहण को लेकर नियम नहीं मान्य होगा।
- होलिका दहन के समय परिवार के लोगों द्वारा एक साथ होलिका की परिक्रमा करना शुभ होता है। परिक्रमा लेते वक़्त होलिका में चना, मटर, गेहूं, अलसी अवश्य डालें। इसे धन लाभ का अचूक उपाय माना गया है।
- मान्यता अनुसार होली वाली रात पीपल के पेड़ के नीचे घी का दीपक जलाकर, पीपल के पेड़ की सात परिक्रमा लगाएं। ऐसा करने से जीवन में आ रही सभी बाधाओं को दूर किया जा सकता हैं।
- होलिका दहन के अगले दिन सबसे पहले मंदिर जाकर देवी-देवताओं को गुलाल चढ़ाना चाहिए, उसके बाद ही होली खेलनी चाहिए।
- होलिका के जलने के दौरान उसमें कपूर डालने से हमारे आसपास मौजूद हानिकारक कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।
- होलिका दहन के समय सरसों के कुछ दाने होलिका को अर्पित कर मां लक्ष्मी को याद करें। ऐसा करने से देवी लक्ष्मी घर पर कृपा करती हैं।
होलिका दहन के आवश्यक नियम और पूजा विधि-
हिंदू शास्त्रों के अनुसार होलिका दहन भद्रा रहित काल पूर्णिमा तिथि के प्रबल होने पर ही किया जाना चाहिए। घर में सुख-शांति और समृद्धि के लिए दहन से पहले होलिका पूजा का विशेष महत्व होता है।
होलिका पूजन करते समय अपना मुंह पूर्व या उत्तर की ओर करके बैठे। पूजन की थाली में पूजा सामग्री जैसे: रोली, पुष्प, माला, नारियल, कच्चा सूत, साबुत हल्दी, मूंग, गुलाल और पांच तरह के अनाज, गेहूं की बालियां व एक लोटा जल होना चाहिए। होलिका के चारों ओर सहपरिवार सात परिक्रमा करके कच्चा सूत लपेटना शुभ होता है। इसके पश्चात विधिवत तरीके से पूजन के बाद होलिका को जल का अर्घ्य दें और सूर्यास्त के बाद भद्रा रहित काल में होलिका का दहन करें। होलिका दहन की राख बेहद पवित्र मानी जाती है। इसलिए होलिका दहन के अगले दिन सुबह के समय इस राख को शरीर पर मलने से समस्त रोग और दुखों का नाश किया जा सकता है।