ब्रिटेन दौरे पर विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने एक कार्यक्रम में अमेरिकी विदेश नीति, चीन-भारत संबंध और वैश्विक आर्थिक स्थिरता पर बेबाकी से जवाब दिया। उन्होंने कहा कि ट्रंप के कार्यकाल में पहले 41 दिन उनके दृष्टिकोण से बिल्कुल भी आश्चर्यजनक नहीं रहे हैं।
विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने लंदन में आयोजित एक कार्यक्रम में अमेरिका की नई विदेश नीति को लेकर जवाब दिया। उनसे पूछा गया कि ट्रंप के कार्यकाल में पहले 41 दिनों के बारे में आप क्या सोचते हैं? क्या यह भारत के लिए अच्छा है? क्या यह दुनिया के लिए अच्छा है? इन सवालों पर विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा, ‘मुझे पूरी ईमानदारी से कहना चाहिए कि यह आश्चर्यजनक नहीं है। अगर आप वास्तव में इस पर नजर रखें और मान लें कि अधिकांश समय राजनेताओं को वह सब नहीं मिलता जो वे चाहते हैं।’
बकौल डॉ जयशंकर, ‘आप जानते हैं कि राजनीतिक दलों के ऐसे नेता जो बड़े वादे करते हैं, ज्यादातर ऐसा करते हैं, लेकिन हमेशा ऐसे वादे सफल नहीं होते। नेताओं को हमेशा वह सब नहीं मिलता जो वे चाहते हैं।
बीते 41 दिनों के घटनाक्रम को लेकर कोई आश्चर्य नहीं
अमेरिका में अपनाए जाने वाले राजनीतिक हथकंडों का परोक्ष जिक्र करते हुए विदेश मंत्री ने कहा, ‘एक सामान्य सिद्धांत के रूप में, आप जानते हैं कि जब राजनीतिक ताकतों या राजनीतिक नेताओं के पास कोई एजेंडा होता है, खासकर कुछ ऐसा हो जिसे उन्होंने काफी लंबे समय में विकसित किया हो और वे बहुत स्पष्ट और भावुक हों। तो उनका रवैया ऐसा ही होता है।’ उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि पिछले कुछ हफ़्तों में हमने जो कुछ देखा और सुना है, वह अपेक्षित ही था।’ बकौल विदेश मंत्री, मुझे थोड़ा आश्चर्य है कि लोग बीते 41 दिनों के घटनाक्रम को लेकर आश्चर्यचकित हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपतियों के साथ भारत को कभी कोई समस्या नहीं हुई
डॉ जयशंकर के सोशल मीडिया पेज पर जारी एक वीडियो में उन्होंने कहा, ‘अब, ऐसा कहा जा रहा है कि क्या वर्तमान अमेरिकी विदेश नीति भारत के लिए अच्छी है? इस पर कई मायनों में मैं कहूंगा हां… यह आप भी जानते हैं…’ लंदन के चाथम हाउस में एक बातचीत के दौरान जयशंकर ने कहा, ‘हमारे अपने (भारत-ब्रिटेन) राजनीतिक संबंधों को बहुत ईमानदारी से देखें। कम से कम हाल के दिनों में, हमें अमेरिकी राष्ट्रपतियों के साथ कभी कोई समस्या नहीं हुई है। ऐसा कोई बोझ नहीं है, जिसे हम ढोते हैं या जो संबंधों पर बोझ है।
फिलहाल अमेरिकी डॉलर अंतरराष्ट्रीय आर्थिक स्थिरता का स्रोत
अमेरिकी मुद्रा डॉलर के बदले किसी और मुद्रा में व्यापार की संभावना को लेकर विदेश मंत्री डॉ. जयशंकर ने साफ किया कि भारत की ऐसी कोई मंशा नहीं है। उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि डॉलर को बदलने के लिए हमारी ओर से कोई नीति है। जैसा कि मैंने कहा, आखिरकार, रिजर्व मुद्रा के रूप में डॉलर अंतरराष्ट्रीय आर्थिक स्थिरता का स्रोत है।’ मुझे लगता है कि अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए आज जो आवश्यक है, उसका रणनीतिक मूल्यांकन करने के बाद इस बारे में हमारी समझ बेहतर होगी। वास्तव में इस मामले पर बेहतर समझ ही हमारी सोच (भारत की नीति) को भी निर्देशित करेगी।
भारत चीन के साथ किस तरह का रिश्ता चाहता है? यह पूछे जाने पर विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने कहा, ‘हमारे बीच बहुत ही अनोखे रिश्ते हैं। सबसे पहले, हम दुनिया के दो ऐसे देश हैं जिनकी आबादी एक अरब से अधिक है। हम दोनों का इतिहास बहुत पुराना है, जिसमें समय के साथ उतार-चढ़ाव आए हैं। आज, दोनों देश ऊपर की ओर बढ़ रहे हैं; यही चुनौती है, और हम सीधे पड़ोसी भी हैं। चुनौती यह है कि जैसे-जैसे कोई देश आगे बढ़ता है, दुनिया और उसके पड़ोसियों के साथ उसका संतुलन बदलता है। जब इस आकार, इतिहास, जटिलता और महत्व वाले दो देश समानांतर रूप से आगे बढ़ते हैं, तो वे अनिवार्य रूप से परस्पर क्रिया करते हैं।
सीमा पर अशांति को लेकर क्या असर पड़ेगा?
बकौल डॉ जयशंकर, भारत और चीन के बीच मुख्य मुद्दा यह है कि कैसे एक स्थिर संतुलन बनाया जाए और संतुलन के अगले चरण में पहुंचा जाए। हम एक स्थिर संबंध चाहते हैं, जहां हमारे हितों का सम्मान किया जाए, हमारी संवेदनशीलता को पहचाना जाए। हालात ऐसे बनें जहां दोनों देशों के लिए स्थिति बेहतर हो। वास्तव में हमारे रिश्ते में यही मुख्य चुनौती है। भारत के लिए, सीमा एक महत्वपूर्ण पहलू है। पिछले 40 वर्षों में, यह धारणा रही है कि सीमा क्षेत्रों में शांति और स्थिरता रिश्ते को बरकरार रखने के साथ-साथ मजबूत बनाने के लिए भी आवश्यक है। उन्होंने कहा, अगर दोनों देसों की सीमा अस्थिर है, शांतिपूर्ण नहीं है, या उसमें शांति का अभाव है, तो यह अनिवार्य रूप से हमारे संबंधों के विकास और दिशा को प्रभावित करेगा।