डॉ. अंबुज राय ने बताया कि कार्डियक एमआरआइ से दिल में सारकोइडोसिस की जांच होती है। एक तो यह जांच महंगी है, दूसरी बात यह कि इसकी सुविधा भी बहुत कम है। इस वजह से अभी स्क्रीनिंग के लिए हार्ट रिदम सोसायटी (एचआरएस) का एलगोरिदम इस्तेमाल होता है। इसमें मरीज में दिल की बीमारी से संबंधित लक्षण, इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफी व सामान्य इकोकार्डियोग्राफी की जाती है।
एम्स ने ब्लड जांच ट्रोपोनिन, एनटी प्रो-बीपीएन व इकोकार्डियोग्राफी जीएलएस (ग्लोबल लांगिट्यूडनल स्ट्रेन) को मिलाकर एक अलग स्क्रीनिंग अलगोरिदम बनाया। इसका 100 मरीजों पर तुलनात्मक अध्ययन किया गया। इस अध्ययन में एचआरएस स्क्रीनिंग से 24 प्रतिशत व एम्स के स्क्रीनिंग अलगोरिदम से 32 प्रतिशत मरीजों के दिल में सरकोईडोसिस होने की बात पता चली।

दिल में सारकोइडोसिस की पहचान कर पाने में सक्षम

इसके बाद जांच में एचआरएस स्क्रीनिंग में पॉजिटिव पाए गए 23 और एम्स स्क्रीनिंग एलगोरिदम में पाजिटिव पाए गए 30 मरीजों में सारकोईडोसिस होने की पुष्टि हुई। इस तरह एम्स का स्क्रीनिंग अलगोरिदम 30 प्रतिशत अधिक मरीजों के दिल में सारकोइडोसिस की पहचान कर पाने में सक्षम पाया गया।

डॉ. अंबुज राय ने बताया कि ट्रोपोनिन व एनटी प्रो-बीपीएन ब्लड जांच है और इकोकार्डियोग्राफी की नई मशीनों में जीएलएस जांच का विकल्प होता है। इसलिए ये जांच आसानी से हो सकती है। इससे अधिक मरीजों की पहचान कर जल्दी इलाज शुरू हो सकता है। इससे मरीज को सारकोइडोसिस के कारण हार्ट फेल्योर होने जैसी स्थिति से बचाया जा सकेगा।