Monday, June 2, 2025
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इंजीनियर बनना चाहते थे पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, इस सब्जेक्ट में कम नंबर आने से नहीं मिल पाया था दाखिला

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मेरठ
साधारण कृषक परिवार में जन्म लेकर देश की सत्ता के शिखर पर पहुंचे पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह का जीवन संघर्षों से भरा रहा है। उनकी आरंभिक शिक्षा मेरठ के गांव से शुरु हुई थी। अपनी मेधा और लगन की बदोलत उन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की। उनके जीवन का अनछुआ एक पहलु यह है कि वकालत के पेशे में आने से पहले वह इंजीनियर बनना चाहते थे।

बीएससी के दूसरे वर्ष में अध्ययन करते उन्होंने रुड़की इंजीनियरिंग कालेज, जो आज आइआइटी के नाम जाना जाता में, प्रवेश के लिए परीक्षा दी थी। 30 सीट थी, चौधरी चरण सिंह का 29 वां नंबर था पर ड्राइंग में 50 प्रतिशत अंक लाना जरूरी था। इसमें उनके नंबर कम थे जिस कारण उनसे कम अंक लाने वाले छात्र को प्रवेश दिया गया। उनके जीवन पर गहन अध्ययन कर लिखी गई पुस्तक धरतीपुत्र चरण सिंह में यह उल्लेख किया गया है।
जीवन की इसी असफलता ने उन्हें अंर्तमुखी बनाया और मनन शीलता की प्रवृत्ति को और प्रगाढ किया। वह जो कुछ बोलते थे उसके पीछे गंभीर निहितार्थ होते थे। किसी विषय पर बोलते हुए आंकडे उनके ऊंगलियों पर होते थे।

मेरठ के प्रख्यात चिकित्सक डा. भूपाल सिंह ने दी चौधरी चरण सिंह को छात्रवृत्ति

चौधरी चरण सिंह की आरंभिक शिक्षा जानी गांव की प्राथमिक पाठशाला में हुई थी। यहां स्कूल के अध्यापक पंडित हरवंश लाल का उन पर विशेष स्नेह था। इसके बाद वह सिवाल स्थित स्कूल में पढ़ने गए। यह स्कूल उनके भूपगढ़ी स्थित घर से दो ढ़ाई मील दूर था। 9-10 वर्ष की उम्र में वह घोड़े की सवारी कर अकेले जाते थे।
मेरठ के जीआइसी से विज्ञान विषय से हाईस्कूल की परीक्षा विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण की थी। इसके बाद उन्होंने आगरा कालेज में 1919 में एमएससी में प्रवेश लिया। पिता मीर सिंह ने पढ़ाई का खर्च उठाया लेकिन रहने आदि व्यवस्था करना उनके बूते से बाहर था।
ऐसी विषम परिस्थिति में जब उनकी शिक्षा बंद करने की नौबत थी। तब मेरठ के जाने माने चिकित्सक डा. भूपाल सिंह ने उनकी मदद की। उन्होंने चरण सिंह को 10 रुपये मासिक वजीफा देना स्वीकार किया। यही नहीं वजीफे की एक साल की रकम अग्रिम ही दे दी। आदर्श नगर निवासी पूर्व विधायक चौधरी नरेंद्र सिंह पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह से 40 वर्षों तक जुड़े रहे।
बताते हैं कि डा. भूपाल सिंह मेरठ के जाने माने सर्जन थे और शहर के धनाढ्य लोगों में उनकी गिनती होती थी। वह गरीब मरीजों का न सिर्फ मुफ्त इलाज करते थे बल्कि जाने का खर्चा भी देते थे। उनकी दानशीलता के किस्से मशहूर है।
पांच बार भारत रत्न चौधरी चरण सिंह की पारंपरिक छपरौली का प्रतिनिधित्व करने वाले चौधरी नरेंद्र सिंह ने बताया कि समाज के अंतिम पायदान पर खड़े आम आदमी का जीवनस्तर ऊंचा उठाने के लिए वह हमेशा प्रयत्नशील रहे हैं। चूंकि उन्होंने यह पीड़ा स्वयं भोगी थी। उन्होंने राजनीति में पिछड़ों और कमजोर रोगों को प्रतिनिधित्व दिया। मंडल कमीशन की नियुक्ति उनका क्रांतिकारी कदम था।

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