भोपाल |
भोपाल के जेपी अस्पताल में डायबिटीज से पीड़ित बच्चों के लिए राहत भरी पहल की गई है। यहां हर गुरुवार को एक विशेष बाल मधुमेह (टाइप वन डायबिटीज) क्लिनिक आयोजित की जा रही है, जहां बच्चों को न केवल फ्री में जांच और उपचार मिल रहा है, बल्कि इंसुलिन की ट्रेनिंग और फ्री किट भी दी जा रही है। यह सेवा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम), मध्यप्रदेश के सहयोग से संचालित हो रही है। क्लिनिक की प्रभारी डॉ. आफरीन आलम हैं, जो स्वयं बच्चों को काउंसलिंग और नियमित मॉनिटरिंग की सलाह दे रही हैं।
फ्री किट में मिल रही जरूरी सामग्री
इस क्लिनिक में पंजीकृत बच्चों को एक फ्री किट दी जाती है, जिसमें ग्लूकोमीटर, ब्लड शुगर टेस्टिंग स्ट्रिप, इंसुलिन (ग्लारजिन और पेन) और एक मॉनिटरिंग कार्ड शामिल होता है। इस कार्ड में बच्चे या उनके परिजन नियमित रूप से शुगर लेवल दर्ज करते हैं, जिससे डॉक्टर उनके स्वास्थ्य की सही निगरानी कर सकते हैं। इसके साथ ही, हिंदी और इंग्लिश में एक किताब भी दी जाती है, जिसमें मधुमेह से जुड़ी सभी जरूरी जानकारियां सरल भाषा में दी गई हैं। यह पहल बच्चों को आत्मनिर्भर बनाते हुए उन्हें बीमारी से लड़ने का आत्मविश्वास भी देती है।
इंसुलिन की ट्रेनिंग भी हो रही शामिल
क्लिनिक में बच्चों को इंसुलिन खुद लगाने की विधि भी सिखाई जा रही है, ताकि वे किसी अन्य पर निर्भर न रहें। डॉ. आफरीन बताती हैं कि बच्चों को बताया जाता है कि उन्हें समय पर खाना खाना है और तय समय पर इंसुलिन डोज लेनी है। यह नियमितता मधुमेह को नियंत्रित करने में सबसे अहम भूमिका निभाती है।
मधुमेह के लक्षणों की पहचान जरूरी
डॉ. आफरीन के अनुसार, बच्चों में मधुमेह की पहचान जल्द होनी चाहिए ताकि समय रहते इलाज शुरू किया जा सके। उन्होंने बताया कि यदि बच्चे में अत्यधिक प्यास लगना, अचानक वजन घटना या बढ़ना, थकान, घाव का देर से भरना, त्वचा पर खुजली और बार-बार मूत्र त्याग की समस्या नजर आ रही हो, तो तुरंत जांच करानी चाहिए। समय रहते इलाज मिलने पर बच्चे सामान्य जीवन जी सकते हैं।
अब तक 52 बच्चों को दी जा चुकी है फ्री किट
जेपी अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ. राकेश श्रीवास्तव ने जानकारी दी कि अब तक क्लिनिक में 67 बच्चे टाइप-1 डायबिटीज से पीड़ित के रूप में पंजीकृत हैं। इनमें से 52 बच्चों को फ्री किट उपलब्ध कराई जा चुकी है, और शेष बच्चों को जल्द ही यह सुविधा दी जाएगी। किट मिलने के बाद भी अस्पताल टेस्ट स्ट्रिप और सेल्स की नियमित आपूर्ति करता रहेगा।
डॉ. श्रीवास्तव ने कहा कि जेपी अस्पताल की यह पहल बच्चों को मधुमेह जैसी गंभीर बीमारी से लड़ने की दिशा में एक सशक्त प्रयास है। यह न केवल उनके इलाज को बेहतर बना रही है, बल्कि उन्हें एक बेहतर और आत्मनिर्भर जीवन जीने की दिशा में भी प्रेरित कर रही है।
आर्टिफिशियल शुगर सप्लीमेंट्स से रहें सावधान डॉ. आफरीन आलम के अनुसार, बाजार में मिलने वाले आर्टिफिशियल शुगर सप्लीमेंट्स जैसे सैकरिन, एस्पार्टेम, साइक्लामेट और स्टीविया लंबे समय तक उपयोग करने पर शरीर पर नकारात्मक असर डाल सकते हैं। ये सप्लीमेंट्स खासकर बच्चों के लिए हानिकारक हैं क्योंकि कृत्रिम शक्कर लीवर पर अतिरिक्त दबाव डालती है, जिससे फैटी लिवर या सूजन की समस्या हो सकती है। लगातार इसके सेवन से किडनी की फिल्टरिंग क्षमता प्रभावित होती है। कुछ रिसर्च से पता चला है कि इससे न्यूरोलॉजिकल एक्टिविटी में गड़बड़ी भी आ सकती है। इसके अलावा यह गट हेल्थ को भी प्रभावित करती है।