Thursday, July 31, 2025
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सही जानकारी नहीं मिलने से रोग बन रहे नासूर, डॉक्टर भी नहीं दे पा रहे मरीजों को समय

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पटना
पर्यावरणीय बदलाव, वायरस-बैक्टीरिया के रूपांतरण, अत्यधिक एंटीबायोटिक के इस्तेमाल, खराब जीवनशैली व खानपान, जनसंख्या में वृद्धि व शहरीकरण से रोगों का शिकंजा तो कसा ही है। अब नए-नए रोग भी सामने आ रहे हैं। जनसंख्या व डॉक्टरों का अनुपात अधिक होने से सरकारी हों या निजी डॉक्टर, मरीजों को एक-दो मिनट से अधिक का समय नहीं दे पा रहे हैं। 

मरीजों को समय नहीं दे पा रहे डॉक्टर

देश में एनएमसी के पूर्व नाम एमसीआइ के मानक के अनुसार डॉक्टर को एक मरीज को कम से कम 10 मिनट परामर्श देना चाहिए। रोग की जटिलता व रोगी की हालत के अनुसार यह ज्यादा हो सकता है। 

इसका नतीजा यह है कि डॉक्टर मरीज को दवा लेने का तरीका, खानपान-व्यायाम समेत अन्य ऐसे निर्देश नहीं दे पाते, जो दवा की प्रभावशीलता बढ़ाने और रोग को जल्द ठीक कर सकती हैं।

विश्व स्वास्थ्य दिवस सात अप्रैल की पूर्व संध्या पर ये बातें आइजीआइएमएस में फार्माकोलॉजी के विभागाध्यक्ष डॉ. हरिहर दीक्षित ने कहीं। 

डॉ. दीक्षित ने कहा कि अस्थमा रोगी को डॉक्टर इन्हेलर तो लिख देते हैं, लेकिन उसे लेने का सही तरीका क्या है यह न तो डॉक्टर बताते हैं, न कंपाउंडर और न ही दवा दुकानदार। नतीजा मरीज को पूरा फायदा नहीं होता। 

डॉ. हरिहर दीक्षित के अनुसार आइजीआइएमएस, एम्स जैसे अस्पतालों में सामान्य रोगियों की भीड़ कम कर इलाज की गुणवत्ता और बढा़ई जा सकती है। इसके लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर डॉक्टरों की उपलब्धता व उपचार की गुणवत्ता सुनिश्चित करनी होगी। 

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर भी मरीजों की संख्या को देखते हुए डाक्टरों की नियुक्ति की जाए ताकि हर रोगी को बेहतर उपचार के साथ बेहतर परामर्श मिले। 

जन्म के साथ ही बेहतर स्वास्थ्य की नींव डालना जरूरी

एनएमसीएच में मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डॉ. अजय कुमार सिन्हा के अनुसार जन्म के पहले घंटे में नवजात को मां का पीला-गाढ़ा दूध पिलाना, छह माह तक सिर्फ मां के दूध पर रखना। 

इसके अलावा स्वास्थ्यप्रद जीवनशैली, नियमित व्यायाम, पौष्टिक खानपान, सोने व जागने का नियत समय, फालतू का तनाव हावी नहीं होने देना, साफ-सफाई व हाइजीन की आदतें बचपन से सिखाई जानी चाहिए। 

बच्चों को कोई रोग नहीं होने पर भी स्वस्थ जीवनशैली व उन्हें कोई समस्या कभी महसूस होती हो तो उसके कारण जानने के लिए बीच-बीच में डॉक्टरों से काउंसलिंग करानी चाहिए। इससे एक गुण विकसित होगा और वे किसी भी रोग की शुरुआत में डॉक्टर के पास जाकर इलाज ले सकेंगे। 

इस वर्ष मातृ-नवजात मृत्युदर कम करने पर जोर

एम्स पटना की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. इंदिरा प्रसाद के अनुसार, इस वर्ष विश्व स्वास्थ्य दिवस की थीम स्वस्थ शुरुआत, आशापूर्ण भविष्य, मातृ एवं नवजात शिशु के स्वास्थ्य में सुधार पर केंद्रित है। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर वर्ष लगभग तीन लाख महिलाएं गर्भावस्था या प्रसव के कारण जान गंवा देती हैं। 20 लाख से ज़्यादा बच्चे जीवन के पहले माह में मर जाते हैं और करीब 20 लाख ही मृत पैदा होते हैं। हर सात सेकेंड में लगभग एक रोकी जा सकने वाली मौत दुखद है। 

राज्य में पहले से ही संस्थागत एवं सुरक्षित प्रसव को बढ़ावा देने के लिए घरेलू प्रसव मुक्त पंचायत का अभियान चलाया जा रहा है। 

उच्च जोखिम वाली गर्भवतियों के उचित शल्य प्रबंधन के लिए प्रथम रेफरल इकाई को मजबूत किया जा रहा है। इसमें बदलाव तभी होगा जब महिलाओं को शारीरिक व मानसिक रूप से प्रसव से पहले, दौरान और बाद में परिवार, डॉक्टर का नैतिक समर्थन मिलेगा। 

विश्व स्वास्थ्य दिवस का उद्देश्य

विश्व स्वास्थ्य दिवस का उद्देश्य हर वर्ष सात अप्रैल को स्वास्थ्य का महत्व समझाने व वैश्विक स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान की पहल को विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। 

इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की स्थापना की वर्षगांठ के रूप में भी जाना जाता है। इसका उद्देश्य दुनिया में लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना एवं स्वास्थ्य सेवाओं को गुणवत्ता बनाने पर जोर देना है। 

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